Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९६
अतीन्द्रिय आत्मिक आनंदनो अनुभव थयो त्यां खबर पडी के आ आनंद आत्मानो
छे; आत्मा अनुभवमां आव्यो, आत्मा श्रद्धामां–ज्ञानमां आव्यो, तेनी पोताने निःशंक
खबर पडे छे. आत्मा आंधळो नथी के पोताना अनुभवनी पोताने खबर न पडे.
प्रश्न:– सम्यग्द्रष्टिने पोताना सम्यक्त्वमां शंका पडे?
उत्तर:– ना; हुं सम्यग्द्रष्टि छुं के नहीं–एम जेने शंका पडे ते सम्यग्द्रष्टि होय ज नहीं.
प्रश्न:– सम्यग्द्रष्टि जीव मरीने विदेहक्षेत्रमां जन्मे?
उत्तर:– हा, स्वर्गना सम्यग्द्रष्टि देवो मरीने विदेहक्षेत्रमां पण जन्मे छे.
सम्यग्द्रष्टि मनुष्य मरीने विदेहक्षेत्रमां जन्मे नहीं; तेमज विदेहक्षेत्रना सम्यग्द्रष्टि जीव
मरीने भरतक्षेत्रमां अवतरे नहीं.
प्रश्न:– सम्यग्द्रष्टि जीव सदेहे विदेहक्षेत्रमां जाय?
उत्तर:– हा; कुंदकुंदमुनिराज संदेहे विदेहमां गया हता.
प्रश्न:– विदेहमां केम जवाय?
उत्तर:– देहथी भिन्न एवा आत्मानुं भान करतां ‘विदेह’ एवा आत्मधाममां
जवाय छे. आत्मा पोते देहथी रहित होवाथी ते ‘विदेह’ छे, ने अंतरना स्वानुभव वडे
तेमां जवाय छे. बहारमां विदेहक्षेत्रमां जवानुं शुं प्रयोजन छे? बहारना क्षेत्रथी
विदेहमां जाय तेटलाथी कांई लाभ थई जतो नथी; अंतरमां देह वगरनुं एवुं जे विदेही
चैतन्यस्वरूप, तेमां नजर करे तो आत्मानो लाभ थाय.
[फागण सुद पुनमे बपोरे जिनमंदिरनी एक वेदी उपर बाहुबली भगवाननी
पुन: प्रतिष्ठा पू. कानजीस्वामीना सुहस्ते थई हती. खंडवाथी सिद्धवरकूट अने बडवानी
पावागिर–उन सिद्धक्षेत्रो नजीक होवाथी अनेक भाई–बहेनो आनंदथी त्यांनी यात्रा
करी आव्या हता. पू. बेनश्री–बेन पण सिद्धवरकूटनी यात्रा करवा पधार्या हता; अने
उमंगभरी यात्रा उपरांत त्यां चार अनुयोगमय जिनवाणीनी मंगल स्थापना पण करी
हती. खंडवामां आनंद–उत्सवनुं वातावरण हतुं. भोपालथी श्री मिश्रीलालजी गंगवाल,
इंदोरथी शेठ देवकुमारजी वगेरे, तेमज आसपासना गामोना अनेक मुमुक्षुओ प्रवचननो
लाभ लेवा आव्या हता, प्रवचनमां गुरुदेव भेदज्ञाननुं घोलन करावीने सम्यक्त्वनी
रीते समजावता हता.)
आत्मामां सर्वज्ञस्वभाव भरेलो छे. ते स्वभावनी सन्मुख थतां जे ज्ञानक्रिया
थाय तेमां आत्मानी एकता छे, ते आत्मानुं स्वरूप छे, ते मोक्षनुं कारण छे, तेथी