Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९६
–– दो दिन दाहोदमें ––
[फागण वद चोथे रतलामथी प्रस्थान करीने दाहोद आव्या; महाराष्ट्र अने
मध्यप्रदेशनो प्रवास पूर्ण करीने आजे पुन: गुजरातमां आव्या. दाहोद आवतां उत्साही
मुमुक्षुमंडळे भावभीनुं स्वागत कर्युं. अहीं दि. जैनोना सो जेटला घर अने कुल चार
जिनालयो छे. बपोरे समयसार नाटक गा. १७–१८ उपर प्रवचन गुजराती भाषामां
थया, आजे लगभग एक मास पछी गुजराती भाषानुं वातावरण प्राप्त थयुं. आजे
रतलामथी दाहोद पहोंचतां संघनी चारे मोटरोने थोडोघणो विलंब थयो हतो.
गुजरात अने मध्यप्रदेश–बे राज्यनी हद ज्यां भेगी थाय छे एवा दाहोद
शहेरमां चालीस हजार जेटली वस्तीमां दोढहजार जेटला जैनो छे. प्रवचनमां बे–त्रण
हजार श्रोताजनोनी सभा उत्सुकताथी आत्मस्वरूपनुं श्रवण करती हती.)
समयसार गा. १७–१८ मां शुद्ध जीवनी सेवा–आराधना केम करवी ते वात
राजाना द्रष्टांते समजावे छे. जगतना तत्त्वोमां जीव ते श्रेष्ठ छे एटले तेने ‘जीवराजा’
कहे छे. जेम संसारमां राजाने ओळखीने तेनी सेवा करवाथी धन–जमीन वगेरे मळे छे;
तेम अनंतगुणना निधानथी भरेलो आ जीवराजा, तेने ओळखीने, श्रद्धा करीने,
एकाग्रतारूप अनुचरण करवाथी मोक्षनी सिद्धि थाय छे. माटे मोक्षार्थी जीवे आवा
आत्माने ओळखीने तेनी सेवा करवी.
एक साधारण राजाने भेटवानो प्रसंग आवतां केवो उत्साह ने प्रेम आवे छे?
तो जगतमां सौथी श्रेष्ठ, सौथी उत्तम एवो आ चेतनराजा पोते, तेनी ओळखाण अने
प्रेम करीने तेने भेटवानो एटले के अनुभव करवानो उल्लास आववो जोईए. ‘अहो,
आवो ज्ञानस्वरूप मारो आत्मा! तेने में आजे देख्यो. मारा भगवान आत्माना आजे
मने भेटा थाय!’ एम चैतन्यनो प्रेम प्रगटावीने अने रागनो प्रेम छोडीने मोक्षार्थी
जीव पोताना आत्माने अनुभवमां ल्ये छे.
जगतने जाणनारो एवो जे चेतनराजा, तेने जाण्या वगर कल्याण केवुं! आत्मा
पोते सुखनो निधान छे, ए कांई गरीब–रांको–भीखारी नथी के बीजा पासे पोताना
सुखनी भीख मांगवी पडे! राग होय तो मने सुख मळे, लक्ष्मी–स्त्री वगेरे होय तो मने
सुख मळे–एम पोताना सुख माटे जे परवस्तुनी भीख मागे छे ते जीव मांगण छे.
शुभरागथी ने तेना फळरूप पुण्यथी मने सुख के मोक्ष मळे एम माननार पण