Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९६ आत्मधर्म : २प :
रागनो भीखारी छे. धर्मी जीव चैतन्यबादशाह, ते तो जाणे छे के राग अने पुण्य वगर
मारा स्वभावथी ज हुं सुखी छुं; मारा सुख माटे रागना के पुण्यना अंशनी पण मारे
जरूर नथी. जगतना कोई पदार्थमां मारुं सुख नथी, एटले तेनी पासेथी मारे कांई लेवुं
नथी,–एवा भानपूर्वक धर्मी जीवने आखा जगत प्रत्ये उदासीनता छे; ने अंतर्मुख
थईने पोताना स्वभावसुखने ते अनुभवे छे. आवा धर्मी जीवो ज जगतमां सुखिया
छे.
आत्मा तो सदाय ज्ञानस्वरूपे ज अनुभवाय छे. मोटा के नाना सौना आत्मा
ज्ञानरूपे ज अनुभवमां आवे छे. पण ‘ज्ञाननो अनुभव ते हुं छुं’ एवी ओळखाण ने
श्रद्धा करवाने बदले अज्ञानी पोताने रागरूपे अनुभवे छे. राग अने ज्ञानना भेदज्ञान
वडे आत्मानी साची ओळखाण तथा श्रद्धा करे, तेने ज आत्मानुं वीतरागी चारित्र
प्रगटे छे. ज्यां रागथी भिन्न ज्ञानस्वरूप आत्मानी ओळखाण अने श्रद्धा नथी त्यां
तेमां एकाग्रतारूप चारित्र क््यांथी थाय?
जेम राजाने ओळखीने तेनो आदर–सेवा करे तो तेने धन–जमीन वगेरे मळे छे.
पण राजाने ओळखे ज नहीं तो तेनी सेवा क््यांथी करे? तेम जेने आत्मा जोईतो होय,
जे आत्मानो अर्थी होय, ते जीव पहेलां ज्ञानस्वरूप आत्माने ओळखे छे, श्रद्धा करे छे
ने पछी तेमां एकाग्र थईने तेनुं सेवन करे छे.
आत्मानी सेवा एटले के तेनी ओळखाण कर्या वगर अनंतकाळमां व्रतादि
शुभराग करीने स्वर्गमां गयो छतां जीव लेशमात्र सुख न पाम्यो. सुख जरापण न
पाम्यो एटले के एकलुं दुःख ज पाम्यो, एनो अर्थ ए थयो के शुभरागमां के स्वर्गमां
जरापण सुख नथी. जो तेमां सुख किंचित् पण होय तो व्रतादि शुभराग करवा छतां केम
लेशमात्र सुख न पाम्यो? रागमां सुख होय तो पामे ने! राग तो दुःख छे, तेनुं सेवन
करी करीने अज्ञानथी एकलुं दुःख ज पाम्यो. जेनामां सुख भर्युं छे, जे स्वयं सुखस्वरूप
छे तेने जाण्या वगर सुख केवुं? सुखनो भंडार एवो आ जीवराजा, अनंत निजगुणोनां
वैभवथी शोभायमान, तेने ओळखीने, श्रद्धा करीने बहुमानथी तेमां एकाग्र थवुं ते
आत्मानी सेवा छे, ते आत्मानी आराधना छे, ते धर्म छे, अने तेनाथी ज मोक्ष सधाय
छे.
आवा आत्मानी ओळखाण आठ वर्षना बाळकनो जीव पण करी शके छे. जो
आवा आत्मानी ओळखाण न करी तो मनुष्य अवतार पूरो थतां तुं क््यां उतारा
करीश, भाई! संसारमां क््यांय आत्माने विसामो नथी; पोतानुं ज्ञानस्वरूप