Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९६ आत्मधर्म : २७ :
भणतर पाणीमां डुबी जशे. तेम जीव बहारनां भले गमे तेटला भणतर भणे पण जो
संसारथी तरवा माटेनी भेदज्ञान–कळा न आवडे तो तेनुं बधुं पाणीमां जशे एटले के ते
संसारमां ज रखडशे. अने बहारना बीजां भणतर ओछा होय पण जो अंतरनी
चैतन्यविद्यावडे तरवानी कळा आवडे छे तो ते जीव संसारमां डुबशे नहीं, पण
अल्पकाळमां मोक्षपद पामशे. आत्मानो तरवानो स्वभाव रागथी पार छे.
आत्मानो ज्ञानस्वभाव समाधान करवानी ताकातवाळो छे. गमे ते प्रतिकूळ
संयोग वखते तेनाथी भिन्नताना भानवडे ज्ञान पोते समाधानस्वरूप रहे छे. एक शेठ
पासे करोड रूा. नी मूडी, अने एकनो एक पुत्र; पुत्रने सट्टो करवानी ना पाडेली, छतां
सट्टो करीने दश लाख रूपिया खोया. ते सांभळीने तेना पिता गुस्से थया अने कह्युं के
भले मरी जाय पण दश लाख रूा. हुं नहीं चूकवुं. त्यारे ते पुत्रनो एक मित्र हतो, ते
समजदार हतो, तेणे शेठने समजाव्युं के बापुजी! तमारी जे एक करोडनी मूडी हती ते
अंते तो तमारा पुत्रने ज आपवानी हती ने! तो एक करोडने बदले तेने हवे नेवुं
लाख रूा. मळशे. दश लाख तेने ओछा मळशे. तो हवे विचारो के जे दश लाख गया ते
तेना गया के तमारा? जो रूा. नहीं आपो तो पुत्रनुं मोढुं जोवा नहीं पामो.–तरत
पिताजी समजी गया के–हा! मारुं मानुं तो मने दुःख छे; पण ते मूडी तेनी हती ने तेनी
गई.– आम ज्ञानना बळे समाधान करवानी आत्मानी ताकात छे. एक प्रसंगमां जे
आटलुं समाधान करी शके छे, ते जगतना सर्व पदार्थोथी पोतानी भिन्नता जाणीने,
ज्ञानस्वभावना बळे संपूर्ण समाधान अने संपूर्ण वीतरागता करी शके छे; अने तेमां
ज साचो आनंद छे.
आत्माने ओळखतां जे आनंद थाय छे तेवो आनंद जीवने पूर्वे कदी थयो नथी.
जेम एक अजाण्यो माणस दररोज मळतो होय, वातचीत करतो होय, पण तेनी
ओळखाण न होय; पण ज्यारे खबर पडे के आ तो मारो भाई छे.–त्यारे
ओळखतांवेंत आनंद अने प्रेम आवे छे के अरे, आ तो मारो भाई! ओळखाण पहेलां
एवो प्रेम आवतो न हतो; ओळखाण थतां ज प्रेम आव्यो. (ए तो जो के रागनो प्रेम
छे, पण ओळखाण थतां साचो प्रेम आवे छे तेटलुं द्रष्टांत लेवुं छे.) तेम
ज्ञानानंदस्वरूप आत्मा, पोतानो साचो बंधु, सदा पोतानी साथे ज छे, ज्ञानपणे सदाय
अनुभवमां आवी रह्यो छे, पण ओळखाण न होवाथी पोताना आत्मानो साचो प्रेम
अने आनंद आवतो नथी, पण परनो प्रेम आवे छे. ज्यां भान थयुं के आ जे ज्ञान छे
ते तो हुं ज छुं; त्यां ओळखाण थतां ज पोताने पोतानो प्रेम आव्यो, स्वानुभवनो
अपूर्व आनंद आव्यो. ओळखाण पहेलां कदी