Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९६ आत्मधर्म : २९ :
* अमदावाद शहेरमां बे दिवस *

पोष वद अमासे सोनगढथी प्रस्थान कर्या बाद जामनगर, गीरनार वगेरे
थईने, अमदावाद–पालेज–व्यारा–एदलाबाद–आकोला–कारंजा, शिरपुर–पंचकल्याणक,
जलगांव–वेदीप्रतिष्ठा, मलकापुर, खंडवा, रतलाम अने दाहोद थईने फागण वद छठ्ठे
पुन: पू. गुरुदेव गुजरातना पाटनगरमां पधार्या. जिनमंदिरमां आदिनाथ भगवाननी
वीतरागमुद्रानां दर्शन कर्या. अमदावादनुं उत्साही मुमुक्षुमंडळ गुरुदेवना फरी फरी
पधारवाथी प्रसन्न थयुं, मंगळमां गुरुदेवे कह्युं के समयसार एवो जे शुद्धआत्मा तेमां
नमीने एटले के अंतर्मुख थईने आनंदनो अंश प्रगट करवो ते अपूर्व मंगळ छे.
त्यारबाद समयसार गा. ७३ उपर प्रवचनो थया.
आत्मामां सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी स्वभाव छे; आवुं आत्मतत्त्व पोताना ज्ञान–
आनंदथी अभिन्न छे अने देहथी–रागथी भिन्न छे. आवा आत्माने ओळखीने तेमां
एकाग्र थतां सर्वज्ञदशा प्रगटे छे. आत्मा पोताना स्वभावने भूलीने क्रोधादि परभावमां
पोतापणे वर्ततो हतो तेथी दुःखी थतो हतो. ते दुःखनी प्रवृत्तिथी छूटवा माटे शिष्य पूछे
छे के प्रभो! आ परभावनी प्रवृत्ति केम छूटे? आ दुःखदायक प्रवृत्ति केम छूटे?
जडनी क्रिया तो आत्मानी नथी, जडमां आत्मा वर्ततो नथी; एटले, जडथी
आत्मा केम छूटे? एवो प्रश्न नथी; पण आत्मानी अवस्थामां परभावनी प्रवृत्ति छे,
अने तेनाथी आत्मा छूटी शके छे, तेथी तेनाथी छूटवानो उपाय शिष्य पूछे छे. तेना
उत्तरमां आचार्यदेव शुद्धआत्मानुं स्वरूप बतावीने कहे छे के आवा आत्मानो निर्णय
करीने तेमां प्रवर्ततां परभावनी प्रवृत्तिने आत्मा छोडी दे छे.–आत्मानो केवो निर्णय
करवो?–के–
छुं एक शुद्ध ममत्वहीन हुं ज्ञानदर्शन पूर्ण छुं,
एमां रही स्थित, लीन एमां शीघ्र आ सौ क्षय करुं.
आत्माना अत्यंत आनंदमां झूलनारा वीतरागी संतमुनिनुं आ कथन छे.
सम्यग्द्रष्टि गृहस्थनेय आत्मानो आनंद होय छे, पण मुनिने तो ते आनंद घणो वधी
गयो छे; मुनि तो पंचपरमेष्ठी पदमां छे; सर्वज्ञ परमात्माना प्रतिनिधि, साक्षात्
सर्वज्ञनो जेने भेटो थयो हतो ने पोते अंतरमां स्वसंवेदनथी सर्वज्ञपदने साधी रह्या
हता, एवा कुंदकुंदआचार्य अने अमृतचंद्रआचार्यनुं आ कथन छे.