Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : चैत्र : २४९६
अहो! आ तो अमृत छे. आत्माना आनंदरूप अमृतने बतावनारी आ गाथा छे.
‘आ हुं स्वसंवेदनप्रत्यक्ष आत्मा छुं’–ते केवो छुं? ज्ञान–दर्शनरूप
चैतन्यस्वभावथी परिपूर्ण छुं, ‘आ हुं’–ए प्रत्यक्षपणुं बतावे छे. सामे वस्तु पडी
होय तेने जोईने एम कहेवाय के ‘आ वस्तु छे.’ तेम धर्मी आत्माने स्वसंवेदनथी
प्रत्यक्ष अनुभवीने कहे छे के आ ज्ञान–दर्शनथी संपूर्ण मारा स्वसंवेदनमां आवतो
आत्मा ज हुं छुं. विकल्पमां ज्ञेय थाउं एवो हुं नथी, स्वसंवेदन वडे जाणवामां
आवुं–एवो ज हुं छुं. वच्चे विकल्प नथी तेथी द्वैत नथी, हुं अखंड एकपणे
अनुभवमां आवुं छुं.
अहा, आवो महिमावंत आत्मा पोते भगवान छे. ते पोतानुं निजरूप
भूलीने राग–द्वेष–क्रोध–मानादि परभावोमां प्रवर्ते ते दुःख अने संसार छे. अने
परभावथी भिन्न एवा पोताना अखंड चैतन्यस्वरूपमां प्रवर्ते त्यारे सुख अने
मुक्ति थाय छे.
आत्मा प्रत्यक्षस्वभावी छे; परोक्षपणुं तेनो स्वभाव नथी, अनंत
चैतन्यस्वभावथी पूरो, अनादि–अनंत एकरूप आत्मा छे. विज्ञानघन स्वभावनी
एकता रागवडे भेदाती नथी. आवी वस्तुनो ज्ञानमां निर्णय करवो जोईए. निर्णय
करवानी ताकात ज्ञानमां छे, रागमां नथी.
हुं कर्ता ने शरीरनां काम मारी क्रिया–एम तो कदी छे ज नहीं. जडना छ कारक
मारामां नथी.
हुं ज्ञानस्वरूप आत्मा कर्ता, अने रागादि भावो मारी क्रिया–एम अज्ञान–
भावथी छे; पण आत्माना ज्ञानस्वभावमां विकारनां छ कारक नथी. ज्ञान कर्ता थईने
रागने करे एवुं तेनुं स्वरूप नथी.
हवे त्रीजो बोल: ज्ञान कर्ता, ने ज्ञानरूप तेनी क्रिया, एम पोताना जे निर्मळ
छ कारक, ते छ कारकना भेदनो विकल्प पण आत्मानुं स्वरूप नथी. छ कारकना
विकल्पथी पार चैतन्यनी शुद्ध अनुभूतिस्वरूप आत्मा छे. आत्मानुं आवुं स्वरूप
नक्की करे तो तेनो अनुभव थाय. निर्णयमां ज जेनी भूल होय तेने साचो अनुभव
थाय नहीं.
अनुभूतिस्वरूप भगवान आत्मा छ कारकना भेदवडे खंडित थतो नथी, एटले
छ कारकना भेदना लक्षे एक अनुभूतिस्वरूप आत्मा अनुभवमां नथी आवतो.