भाई! आ तारुं तत्त्व संतो तने बतावे छे.
राग ते तो ज्ञाननुं परज्ञेय छे. रागादि जे अनेक परभावो–तेरूपे नहीं होवाथी आत्मा
एक छे; ते पोतानुं एकपणुं छोडीने अनेक परभावोरूपे थतो नथी. आ रीते धर्मी जीव
पोताना आत्माने शुद्ध अने एक जाणे छे.
जिनेन्द्रदेवनो चरणाभिषेक कर्यो हतो. रात्रे तत्त्वचर्चा थती हती. तत्त्वचर्चामां एक
प्रश्न थयो के –
जुदुं रहे. विकल्पनो एक अंश पण ज्ञानने पोतापणे न भासे एटले खरेखर ज्ञानमां
विकल्प नथी थयो, ज्ञानथी जुदो ज रह्यो छे. आ रीते ‘ज्ञान अने रागनी भिन्नताने’
ज्यारे ओळखे त्यारे ज ज्ञानीनी खरी ओळखाण थाय.
वाळीने तारी वस्तुने निर्णयमां ले. तारी एक एक समयनी पर्याय अने त्रिकाळी
ध्रुवस्वभाव,–एक समयमां आवो उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप स्वभाव छे ते सर्वज्ञ भगवाने
जोयो छे. एक समयमां उत्पाद–व्यय–ध्रुव थाय ए सूक्ष्म वस्तुस्वरूप सर्वज्ञ सिवाय
बीजा कोईना शासनमां होय नहि. एकला उत्पाद–व्ययना अंशने जोया करे तो
शुद्धस्वभावनो निर्णय थाय नहीं.
नथी, ते ज्ञेयपणे भले हो पण ते मारा स्वभावपणे नथी, ज्ञान साथे एकपणे नथी.
आवुं भेदज्ञान करीने निजस्वरूपमां निश्चल रहेतां विकल्पना कल्लोलो शमी जाय छे ने
परभावनी प्रवृत्ति छूटी जाय छे.–आनुं नाम धर्म छे ने आ मोक्षमार्ग छे.