Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९६ आत्मधर्म : ३३ :
जे स्वरूप समज्या विना पाम्यो दुःख अनंत;
समजाव्युं ते पद नमुं श्री सद्गुरु भगवंत.
पोतानुं स्वरूप न समज्यो तेथी जीव दुःखी थयो, बीजा कोई कारणे नहीं. अने
पोतानुं सत्यस्वरूप श्रीगुरु पासेथी सांभळीने समज्यो त्यारे ज दुःख मटीने सुख थयुं;
आ ज सुखनो उपाय छे, बीजो कोई उपाय नथी.
नवतत्त्वमां शुद्ध जीवतत्त्व तो उपयोगस्वरूप छे. रागादि भावो आस्रव तत्त्व छे.
उपयोग अने रागनुं भेदज्ञान ते संवर तत्त्व छे. ते संवर तत्त्वनुं स्वरूप बतावीने
आचार्य भगवान तेनी प्रशंसा करे छे. अरे जीवो! रागथी भिन्न एवा चैतन्यनुं
भेदज्ञान करीने तमे आनंदित थाओ.
आ वीतरागी संतोनो सिंहनाद छे, परमेश्वरनी ध्वनिनो नाद छे के हे जीव!
तारा असंख्यप्रदेशी चैतन्यपदमां रागादि परभावोनो प्रवेश नथी, तारी चैतन्यवस्तु
रागथी जुदी छे.
[प्रवचन बाद मंडपमां जिनेन्द्र भक्ति थई हती; भक्तिमां गुरुदेवे स्तवन
गवडाव्युं हतुं. बीजे दिवसे सवारे प्रवचन बाद कुमारी शान्ताबेन मणियारे आजीवन
ब्रह्मचर्य–प्रतिज्ञा लीधी हती.)
फागण वद ९: प्रवचनमां चैतन्यनी धूनथी गुरुदेव कहे छे के अहो! आत्मा
अद्भुत रत्नोथी भरेलो चैतन्यरत्नाकर छे; केवा रत्नो? जड रत्नो नहीं, पण जेमांथी
केवळज्ञान–प्रकाश खीले, जेमांथी अनंत आनंद खीले, एवा चैतन्यगुणरूपी रत्नोनां
निधान आत्मामां भर्या छे. आवा आत्माना आधारे राग थाय नहीं. रागनो आधार
ज्ञान नथी, ने ज्ञानने रागनुं आलंबन नथी. अहो, आवी आत्मवस्तु, तेने विचारमां
ल्यो तो ते उपयोगस्वरूप ज छे. राग करतां करतां आवो आत्मा पमाई जाय एम
नथी, केमके रागमां उपयोग छे ज नहीं. रागवडे आत्मानी प्राप्ति करवा मांगे तेणे
रागथी जुदा आत्माने जाण्यो नथी. भाई, ज्ञान अने रागनी वच्चे भेदज्ञानरूपी करवत
मुकीने अत्यंत जुदा कर. जुदाने एक मानीश तो तारुं ज्ञान मिथ्या थशे. जुदां छे तेने
जुदां जाण तो रागनो अंश पण तने तारा कार्यरूपे भासशे नहीं. उपयोग पर्यायमां ज
धर्मी पोताना आत्माने तन्मय देखे छे; राग साथे जराय पोतानुं तन्मयपणुं नथी एम
ते अनुभवे छे.