Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९६ आत्मधर्म : ३७ :
जगतना पदार्थो जड के चेतन ते सौ पोतपोतानी पर्यायरूपे परिणमवाना
स्वभाववाळां छे; बीजो तेने परिणमावे तो ते परिणमे–एवा पराधीन कोई पदार्थ
नथी. जे स्वयं परिणमे छे–ते पदार्थने हुं परिणमावुं एम अज्ञानी मोहथी ज माने छे.
तेने अहीं समजावे छे के भाई! आत्मा तो चैतन्यचक्षु छे. जेम आंख पदार्थोने देखे पण
तेमां उथलपाथल न करे, तेम जगतने देखनारी चैतन्यआंख, तेने परपदार्थनुं कर्तापणुं
के भोक्तापणुं नथी; ते तो शुद्धज्ञानरूपे परिणमे छे. आ शुद्धज्ञान छे ते आनंदसहित छे.
ज्ञानना स्वरूपथी राग ते जुदी चीज छे. ज्ञानमां अने रागमां बंनेमां आत्मा
एकसाथे तन्मय थई शके नहीं. एकसाथे बंनेनो कर्ता थवा जाय तो ते पोताना
स्वरूपने भूले छे, ज्ञान अने रागनी भिन्नताने ते भूले छे. रागनो कर्ता थईने तेमां
तन्मय थवा जाय तो रागथी भिन्न एवा ज्ञानने ते भूले छे, एटले के अज्ञानी थाय छे.
अने जो स्वसन्मुख थईने ज्ञानमां तन्मयपणे परिणमे तो तेमां रागनुं कर्तापणुं रहेतुं
नथी. अहो, परभावोथी पाछा हठीने ज्ञानना समुद्रमां आववुं ते एक महान कार्य छे.
रागमां रहेवुं ते मारुं कर्तव्य नथी. ज्ञानसमुद्र तो आनंदथी भरेलो छे तेमां रागनुं के
कर्मनुं कर्ता–भोक्तापणुं नथी. आवा आत्मानी द्रष्टिथी शुद्धज्ञानपरिणतिरूपे परिणमेला
ज्ञानी धर्मात्मा ते रागना कर्ता–भोक्ता थता नथी. ज्ञानीनो आत्मा के ज्ञानीनी
शुद्धोपयोग– परिणति, तेमां क््यांय परभाव नथी. आवी दशानुं नाम मोक्षमार्ग छे.
वस्तुमां पर्यायपणे उत्पाद ने विनाश थाय छे, छतां द्रव्यपणे जे ध्रुवता छे ते
ध्रुवनुं सद्रशपणुं मटतुं नथी. पर्याय अपेक्षाए विसद्रशता होवा छतां ध्रुव अपेक्षाए
सद्रशता छे. पर्यायनी विसद्रशतारूपे आत्मा पोते परिणमतो होवा छतां, ध्रुवअपेक्षाए
तेनुं सद्रशपणुं मटतुं नथी.–आवो वस्तुनो स्वभाव छे. वच्चे राग थाय ते ज्ञाननुं कर्तव्य
नथी जो ते ज्ञाननुं कर्तव्य होय तो रागमां पण आनंदनुं वेदन आववुं जोईए; रागमां
तो दुःख छे, ते धर्मी आत्मानुं कार्य केम होय? सातमी नरकना तीव्र प्रतिकूळ संयोग
वच्चे रहेलो सम्यग्द्रष्टि जीव पोतानी ज्ञानपरिणतिमां दुःखने वेदतो नथी; जरीक
अणगमानो जे भाव छे ते ज्ञानना परज्ञेयरूपे छे, ज्ञान तेमां तन्मय नथी एटले ते
ज्ञाननुं कार्य नथी.
भाई! आवा ज्ञानस्वरूप तारी वस्तु छे. आवी वस्तुनुं ज्ञान ते आनंद सहित
छे. एकला रागने जाणनारुं ज्ञान तेमां आनंद नथी. राग अने ज्ञाननी भिन्नता
जाणीने,