Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९६ आत्मधर्म : ३९ :
निजवैभवनो स्वामी समजे छे, स्वर्गना विमाननो स्वामी ते पोताने मानतो नथी,
एक विकल्पनुं पण स्वामीपणुं ज्यां नथी त्यां जड–विभूतिनी शी वात?
शुभराग करो ने परनी दया पाळो–एवी वात ते तो साधारण वात छे,
साधारण लोको पण एवुं तो जाणे छे. शुं एवी शुभरागनी ज कथा सांभळवा स्वर्गेथी
ईन्द्रो अहीं आवता हशे?–ना, चिदानंद–स्वभावी आत्माना वीतरागरसनी अपूर्व
धारा तीर्थंकरदेवनी वाणीमां वहे छे, ते वीतरागरसनुं श्रवण करवा माटे ईन्द्रो स्वर्गेथी
ऊतरीने मध्यलोकमां आवे छे. आ तो कोई अपूर्व वीतरागभावनी कथा छे, एनुं
श्रवण पण दुर्लभ छे. भक्तमांथी भगवान बनवानी आ वात छे.
अज्ञानी कहे छे के पहेलां राग ने पछी आत्मा, शुभराग करतां–करतां आत्मा
पमाशे. ज्ञानी कहे छे के पहेलां राग नहीं पण पहेलां आत्मा, पहेलां रागथी जुदो पडीने
आत्मानुं ज्ञान कर, पछी वच्चेना रागनुं साचुं ज्ञान थशे. पहेलेथी जो रागमां अटकीश
तो आत्माने भूली जईश. निर्मळ पर्यायरूप परिणमेलो आत्मा रागने करतो नथी,
रागने जाणे भले पण तेमां तन्मय थतो नथी, ज्ञानने रागरूप करतो नथी.
अहो! भेदज्ञाननी अपूर्व वात छे. ज्ञान अने रागनी भिन्नता जीवे कदी अनुभवी
नथी, ते अनुभव केम थाय? तेनी आ वात छे. अखंड आनंदधाम आत्मामां जे उपयोग
एकाग्र थयो ते उपयोग रागने केम करे? आनंदना वेदनमां रागनुं वेदन केम होय
द्रव्य–पर्यायरूप आत्म वस्तु, तेने जोनारा बे नयो. द्रव्यनयनो विषय ते पण
एक अंश छे, ने पर्यायनयनो विषय ते पण एक अंश छे. शुद्धनय पोते पर्याय छे पण
ते अखंड द्रव्यने विषय करे छे, त्यां नय अने तेनो विषय अभेद थई जाय छे. आवा
अभेद आत्मानी प्रतीत ते सम्यग्दर्शन छे. ‘आ शुद्धनय अने आ तेनो विषय’ एवा
भेद अनुभूतिमां नथी. आनंदरसनुं धाम आत्मा तेनी सन्मुख थईने तेनुं वेदन करवुं
ते शास्त्रनुं तात्पर्य छे.
भाई, दुनियानी वात समजवा माटे तेमां रस लईने तुं ऊंडो ऊतरे छे, तो आ
तारा आत्माना वैभवनी वात समजवा माटे तेमां रस लईने तुं ऊंडो ऊतर, तो कोई
अपूर्व वस्तुनो आनंद तने तारामां अनुभवाशे.
* * *
(प्रवचनसार गा. १७२ ना प्रवचनोमांथी)
निजस्वरूपने जाणवानी जेने दरकार छे अने धगश छे एवा जिज्ञासु
शिष्यने आचार्यदेव आ गाथा द्वारा आत्मानुं स्वरूप ओळखावे छे. आत्मानुं
लक्षण चेतना