Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९६ आत्मधर्म : ३ :
भगवाननी स्थापना थई; पछी जिनवाणी श्री समयसारनी स्थापना थई तेमज
मंदिरजीना शिखर उपर कळश तथा धर्मध्वज शोभी ऊठया. आम आनंदपूर्वक
जलगांव जिनमंदिरमां भगवान जिनेन्द्रदेवनी प्रतिष्ठा थई. जलगांवना मुमुक्षुओने
धन्यवाद!
अहीं मुमुक्षुओना घर थोडा होवा छतां उल्लास घणो हतो. अहींनी चार चार
बहेनो सोनगढ–ब्रह्मचर्याश्रममां रहे छे. भगवंतोनी प्रतिष्ठा वखते भक्तोना हैडां
अपार उत्साहथी नाची ऊठया हता. मात्र त्रण महिनामां एक लाख रूा. नुं जिनमंदिर
तैयार करीने वेदीप्रतिष्ठा पण आनंदथी थई गई.
बपोरे शांतियज्ञ तथा प्रवचन बाद जिनेन्द्रभगवाननी भव्य रथयात्रा नीकळी
हती. गंधकूटी उपर वीतरागप्रभुना दर्शनथी जलगांव नगरी जाणे धन्य बनी गई.
रथयात्रा जिनमंदिरे आवी, ने मंगल प्रतिष्ठा उत्सवनी पूर्णताना उल्लासमां
आनंदकारी जयजयकारथी मंदिर गाजी ऊठयुं, पोतानी नगरीना आंगणे
जिनभगवंतोने देखीने मुमुक्षु भक्तोनां हैयां तृप्त थया. हवे प्रभुनी सेवा करीशुं ने
प्रभुना मार्गे आत्महित साधीशुं एवी भावनाथी खूबखूब भक्ति करी.
गुरुदेव जलगांव शहेरमां छ दिवस रह्या; हंमेशा रात्रे तत्त्वचर्चा थती हती.
फागण सुद सातमने दिवसे बपोरे जलगांवथी त्रीसेक माईल दूर धरणगांवमां एक
विशाल जिनालय छे, तेमां नाना–मोटा त्रणसो उपरांत प्राचीन जिनबिंबो बिराजे
छे. पार्श्वनाथप्रभुना एक प्राचीन प्रतिमा दोढहजार वर्षथी पण वधु प्राचीन छे,
तेमना हाथनी आंगळीओमां विशेष प्रकारनी शैली देखाय छे. धरणगांवमां मुमुक्षु
मंडळ चाले छे, घणा भाई–बेनो उत्साही छे. गुरुदेव पधारतां उत्साहथी स्वागत
थयुं; जिनमंदिरमां आवीने जिनेन्द्रसमूहनां दर्शन कर्या. पछी जिनमंदिरना
चोगानमां भरचक सभा वच्चे स. कळश १२६ उपर प्रवचन करीने भेदज्ञाननुं
स्वरूप समजाव्युं. अहीं गुजराती के हिंदी समजवानी मुश्केली छतां सभाए
जिज्ञासाथी प्रवचन सांभळीने प्रसन्नता व्यक्त करी हती. प्रवचन पछी विशाळ
जिनमंदिरनुं ने जिनबिंबोनुं फरी अवलोकन करीने गुरुदेवे भक्ति करावी हती.
आम प्रसन्नतापूर्वक धरणगांवनो कार्यक्रम पूरो थयो हतो ने सांजे पुन: जलगांव
पधार्या हता. रविवार (फागण सुद ८) छेल्ला दिवसे प्रवचन अने अभिनंदनपत्र
समर्पण बाद जिनमंदिरमां