: चैत्र : २४९६ आत्मधर्म : प :
पहेलुं सुख ते भेदविज्ञान
[समयसार गा. ७४ उपर जलगांवमां फागण सुद ३ थी ८ना प्रवचनोमांथी]
दुःखथी छूटवा माटे केवुं भेदज्ञान करवुं? तेनी समजण
आत्मा अनादिकाळथी ज्ञान–आनंदस्वरूप वस्तु छे; ते पोताना चैतन्यस्वरूपने
भूलीने संसारमां रखडे छे. संसारमां रखडतां तेणे लक्ष्मी–धन वगेरेनो संयोग
अनंतवार मळ्यो, पण पोतानी चैतन्यलक्ष्मी शुं छे ते तेणे कदी जाण्युं नथी.
आ संसारमां रखडता जीवने मनुष्यपणुं मळवुं अने साचा देव–गुरुनो योग
तथा जैनधर्मनुं श्रवण मळवुं बहु मोंघुं छे. भगवानना समवसरणमां धर्मनुं श्रवण
करवा माटे स्वर्गमांथी ईन्द्रो अने देवो पण आ मनुष्यलोकमां आवे छे. तो ए धर्मकथा
केवी हशे! ते धर्मश्रवण माटे बहुमान अने उत्साह जोईए. सीमंधर परमात्मा वगेरे
तीर्थंकरो अत्यारे पण मनुष्यलोकमां विदेहक्षेत्रमां बिराजे छे, ने आत्माना स्वरूपनी
धर्मकथा संभळावे छे, ईन्द्र अने चक्रवर्ती भक्तिपूर्वक श्रवण करे छे. भगवाने जे उपदेश
आप्यो ते ज आ समयसारमां कुंदकुंदाचार्यदेवे समजाव्यो छे.
भाई, तारा आत्मानुं साचुं स्वरूप शुं छे? तेने ओळख. शरीर अने पैसा ए
तो जड छे, पुण्य–पापना भावो थाय ते पण तारुं खरूं स्वरूप नथी; तेनाथी पण पार
थईने आनंदस्वरूप आत्मानुं वेदन थाय ते धर्म छे. आवा स्वरूपने ओळखवुं ते ज
दुःखथी छूटवानो रस्तो छे. परमात्माए सुख माटे आवो रस्तो बताव्यो छे. पोते आवो
रस्तो लीधो ने जगतने पण ए ज मार्ग बताव्यो. तेनुं आ वर्णन छे.
सुख कहो के धर्म कहो; धर्म सूक्ष्म छे; शुभराग करवो ते तो स्थूळ छे, ते तो
अज्ञानीने पण आवडे छे, पण रागथी पार एवो सूक्ष्मधर्म शुं चीज छे? तेनी
अज्ञानीने खबर नथी. पुण्य अने पापथी भिन्न ज्ञानस्वरूप आत्मानी ओळखाण एक
क्षण पण करे तो अनंतकाळना भवचक्रनो अंत आवे ने अल्पकाळमां मुक्त थई जाय.
आवुं भेदज्ञान करवुं ते धर्मनी मुख्य चीज छे. बाकी जिनमंदिर–प्रतिमा–पूजा वगेरे
शुभभावो श्रावकने आवे छे खरा, पण ते शुभराग कांई ज्ञानस्वरूप नथी, ज्ञानथी ते
भिन्न छे, ते मोक्षनुं कारण थतुं नथी, मोक्षनुं कारण तो राग वगरनी एवी ज्ञानक्रिया ज
छे. आवा ज्ञानवडे आत्मबोध आठवर्षना बाळकने पण थाय छे. आवा आत्मबोध
वगर कदी जन्म–मरणनां दुःख मटे नहीं.