Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९६
जीवे पाप अने पुण्य बंने भावो अनंतवार कर्या छे, अनादिकाळथी ए ज काम
कर्युं छे; जडनुं काम कदी कर्युं नथी, अने पाप–पुण्यथी पार एवुं ज्ञाननुं काम शुं छे ते कदी
जाण्युं नथी. भाई, पुण्य–पापना भावो तो तारा ज्ञानथी विरुद्धभावो छे, ते तारा
ज्ञाननी पुष्टि करनारां नथी पण घात करनारां छे. ज्ञाननो स्वभाव तो शांत अनाकुळ
छे, तेना वेदनथी सम्यग्दर्शन अने आनंद थाय छे. धर्मनी आ रीतने ओळखे पण नहीं
अने जडने तथा रागने ज पोतानुं स्वरूप मानीने वर्ते ते जीवने धर्म क््यांथी थाय?
रागने पोतानुं स्वरूप ज माने ते रागथी पाछो क््यारे वळे? ज्ञान अने रागनी भिन्नता
जाणीने भेदज्ञान करे तो ज्ञानमां तन्मय थाय ने रागथी जुदो पडे. आ रीते भेदज्ञान
वडे ज आत्मा आस्रवोथी एटले के दुःखथी छूटे छे. बीजो कोई उपाय दुःखथी छूटवानो
नथी.
चारगतिमांथी नरक करतां स्वर्गमां जनारा जीवो झाझा छे. जीवे अज्ञानपणे
पाप–पुण्य करीने नरक करतां स्वर्गना भव असंख्यगुणा कर्या छे, ने तिर्यंचना
(एकेन्द्रियना) भव तो तेनाथी अनंतगुणा कर्या छे. चारे गतिमां मनुष्यपणुं सौथी
दुर्लभ छे; मनुष्यभव सौथी ओछा कर्या छे, छतां ते पण अनंतभव कर्या छे. आवुं
मनुष्यपणुं पामीने तेमां सर्वज्ञपरमेश्वर जेवो पोतानो आत्मा, तेनी ओळखाण करीने
सम्यग्दर्शन करवुं ते मूळ धर्म छे.
बापु! आवो आत्मकल्याणनो अवसर मळ्‌यो, तेमां पोतानुं हित केम थाय तेनो
विचार कर. बहारनी होड–हरिफाई छोड. बीजा पासे घणा पैसा ने मारी पासे थोडा–
एवी खोटी चिंता करे छे, पण जेवा सर्वज्ञभगवान छे तेवा ज सर्वज्ञस्वभावनो वैभव
मारामां भर्यो छे–एम निजनिधाननो विश्वास कर, तो अपूर्व शांति मळे. आत्मा ज्यारे
पोताना स्वभावनुं भान करीने तेमां एकाग्रताथी सर्वज्ञपद प्रगट करे छे त्यारे ते
आत्माने ज ईश्वर–परमात्मा कहेवाय छे. एटले पोताना सर्वज्ञ स्वभावनी उपासना
(ओळखाण अने एकाग्रता) ते परमेश्वरनी खरी उपासना छे. आवा परमेश्वरनी
ओळखाण वगर साची ईश्वरनी उपासना थई शकती नथी.
आत्मा ज्यारे सर्वज्ञ परमेश्वर थाय छे त्यारे तेने जरापण राग रहेतो नथी,
वस्र होतां नथी, खोराक होतो नथी, ईच्छा होती नथी. एक क्षणमां पूर्ण आनंदना
भोगवटा सहित त्रणकाळ–त्रणलोकने जाणे छे. आवा परमात्मानी ओळखाण पूर्वक
तेमनी स्थापना–पूजा–बहुमान ते ईश्वरनी व्यवहार उपासना छे; अने ‘जिनपद