Atmadharma magazine - Ank 319
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९६ आत्मधर्म : ११ :
आत्माने पोताना उपयोगचिह्नमां परज्ञेयोनुं आलंबन नथी. परज्ञेयनुं
अवलंबन करीने थाय ते साचो उपयोग नहीं. उपयोगमां दिव्य–ध्वनिनुं अवलंबन
नथी. उपयोगचिह्न ते कहेवाय के जे पोताना आत्माने ज अवलंबीने वर्ते बहारना
वैकुंठमां (एटले के स्वर्गमां) कांई सुख नथी, त्यां कांई भगवान नथी बिराजता;
अंतरमां ज्ञान अने आनंदथी परिपूर्ण पोतानो आत्मा ते ज साचुं वैकुंठ छे; तेमां अंदर
जतां चैतन्यभगवानना भेटा थाय छे.
चैतन्यनो जे उपयोग ते स्वयमेव (परना आलंबन वगर ज) जाणवाना
स्वभाववाळो छे. परनुं आलंबन कहेतां भगवाननुं, शास्त्रनुं, गुरुनुं कोई पण
परवस्तुनुं अवलंबन करीने अटके तो ते उपयोगमां शुद्धआत्मा लक्षित थतो नथी, माटे
आत्माना उपयोगलक्षणमां ते कोईनुं पण अवलंबन नथी. परना अवलंबनमां तो
राग छे, ते कांई आत्मानुं चिह्न नथी. रागमां कांई सुख नथी. रागथी भिन्न एवो
निर्विकल्प अतीन्द्रिय उपयोग तेमां ज परम सुख छे. आनंदना धाम प्रभुने आ
शरमजनक शरीरो धारण करवा पडे ते शोभतुं नथी. उपयोगलक्षणमां रागनुं के शरीरनुं
ग्रहण नथी.
पर तरफ झुकता भावने आत्मानुं लक्षण कहेवाय नहीं. अंतरमां झुकीने
आत्माना स्वभावमां जे एकता करे ने रागथी भिन्नता करे ते उपयोग ज आत्मानुं
लक्षण छे; तेमां आनंद छे. स्वज्ञेय–आत्मा सिवाय परज्ञेय साथे उपयोगनो संबंध नथी.
परावलंबी उपयोग वडे आत्माने जाणी शकातो नथी, माटे ते उपयोगने आत्मानुं
स्वरूप कहेता नथी. आवो आत्मा ज्यां अनुभवमां लीधो त्यां उपयोगमां परज्ञेयनुं
आलंबन नथी.
आत्मानी अनंतशक्तिमां एक शक्ति ‘स्व–स्वामीत्वसंबंध’ नामनी छे; पण ते
शक्तिनुं कार्य एवुं नथी के आत्मा परनो स्वामी थाय. आत्मानो स्व–स्वामीत्व संबंध
पोतामां ज पूरो थाय छे, परमां जतो नथी. आत्माना द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे साथे
आत्माने स्व–स्वामीपणुं छे. निर्मळ उपयोगरूपे आत्मा पोते परिणमे छे, क्यांय
बहारथी ते उपयोग लावतो नथी. आत्माने परद्रव्योथी विभक्तपणुं छे ने ज्ञानरूप
स्वधर्मथी अविभक्तपणुं छे.–आवी निर्मळ पर्याय सहितना शुद्धआत्माने एकपणुं तथा
ध्रुवपणुं छे–एम प्रवचनसारनी १९२ मी गाथामां कह्युं छे. स्वभावना अवलंबने
प्रगटेली, अने बीजा कोईना अवलंबन वगरनी एवी ज्ञानपर्यायवाळो आत्मा छे.
बहारथी तेनुं ग्रहण नथी माटे तेने अलिंगग्रहणपणुं छे. ज्ञानमां