: वैशाख : २४९६ आत्मधर्म : १७ :
वांकानेरमां बे दिवस
[महावीर–जन्मोत्सव अने
स्वाध्याय मंदिरनुं उद्घाटन]
चैत्र सुद १२ ना रोज पू. गुरुदेव मोरबीथी वांकानेर पधारतां उत्साहथी
भावभीनुं स्वागत थयुं. अहीं जिनमंदिरनी बाजुमां ज मोटुं स्वाध्यायमंदिर बंधायेल
छे, तेनुं उद्घाटन भाईश्री चीमनलाल विकमचंद संघवीना हस्ते थयुं. स्वाध्यायमंदिर
सुंदर छे. स्वाध्याय मंदिरमां प्रवेश पछी स्वागत–गीत बाद मंगल प्रवचनमां गुरुदेवे
समयसारनी पहेली गाथा याद करीने कह्युं के–वंदित्तु सव्व सिद्धे एम कहीने अनंत
सिद्ध भगवंतोने नमस्काररूप मंगळ कर्युं छे. जे ज्ञानमां अनंत सिद्धोनो स्वीकार थयो ते
ज्ञान रागथी छूटुं पड्युं ने पोताना ज्ञानानंद स्वभाव तरफ वळ्युं; ते अपूर्व मांगळिक
छे.
आजे आ मंडपमां मांगळिक थाय छे. टीकामां अमृतचंद्राचार्यदेवे प्रथम अथ
शब्द मुक््यो छे ते मंगळ–सूचक छे. अनादिकाळथी राग–द्वेष अज्ञानरूप जे मोहवासना
(परपरिणति) हती ते अमंगळ हतुं, ते भावने दूर करीने हवे आत्मामां अनंत
सिद्धोने स्थापीने साधक भाव शरू थाय छे ते अपूर्व मंगळ छे. दर छ महिना ने आठ
समये ६०८ जीवो मोक्ष पामे छे एम सर्वज्ञदेवे जोयुं छे, ते–अनुसार अत्यार सुधीना
काळचक्रना प्रवाहमां अनंता सिद्ध भगवंतो थया; तेमने मारा आत्मामां स्थापुं छुं
एटले के तेमने ओळखीने मारी पर्यायमां शुद्धात्मानो आदर करुं छुं ने रागनो आदर
छोडुं छुं; सिद्धपदनो आदर करुं छुं एटले के स्वभावसन्मुख थाउं छुं. हे सिद्ध भगवंतो!
मारी ज्ञानदशामां आप पधारो; आप मारा ज्ञानमां बिराजो एटले अल्पज्ञता के राग–
द्वेष मारी पर्यायमां नहीं रहे. ज्यां अनंत सिद्धो बिराजे त्यां राग–द्वेष केम होय?
सिद्धस्वरूपना लक्षे राग टाळीने हुं पण परमात्मा थईश, सिद्ध पद पामीश. आवी
भावनाथी सिद्धने नमस्काररूप अपूर्व मंगळ कर्युं छे.
लोको एक साधारण पुण्यवंत राजानो पण आदर करे छे, तो आ सिद्ध भगवान
तो त्रण जगतना श्रेष्ठ आत्मवैभवथी शोभता राजा छे, तेनो अपूर्व भावे आदर करुं