: १८ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९६
छुं. मारा ज्ञान आंगणाने उज्वळ करीने तेमां भगवानने आमंत्रुं छुं. अनंत सिद्धपद
प्रगटवानी आत्मामां ताकात छे–तेनो विश्वास करीने आदर कर्यो ते ज मंगळ छे.
आत्मानो आवो स्वभाव छे ते प्रतीतमां लेतां सुखनी प्राप्ति ने मोहनो नाश थयो ते
मंगळ छे. आ मांगळिक आनंदनुं दाता छे. अनंता सिद्ध थया तेओ राग वगरना
एकला ज्ञानमय छे–तेनो स्वीकार करतां पोताना शुद्ध स्वभाव तरफ झुकाव थाय छे ने
राग तरफ झुकाव रहेतो नथी. आ ज अपूर्व मंगळ छे.
अनंता सिद्धभगवंतोना आदरना बहाने हुं मारा पूर्ण स्वभावने याद करूं छुं;
तेनो आदर करुं छुं; तेना आदरथी मोहदशानो नाश थईने परमात्मदशा प्रगट थाओ.–
आ प्रमाणे मंगळ कर्युं.
वांकानेरमां बे दिवस दरमियान प्रवचनमां समयसार गा. १प मी वंचाणी हती.
तत्त्वचर्चा तथा भक्ति पण सरस थती हती. चैत्र सुद तेरसे महावीर भगवाननो
मंगल जन्मोत्सव तेमज वांकानेरना जिनमंदिरमां वीरप्रभुनी प्रतिष्ठानो वार्षिक दिवस
आनंदथी उजवायो हतो. सवारमां जिनमंदिरमां समूह पूजा बाद प्रवचनमां शरूआतमां
वीरप्रभुने याद करीने गुरुदेवे कह्युं के –
आजे भगवान महावीर परमात्मानो जन्म दिवस छे; अहीं (वांकानेर–
जिनमंदिरमां) भगवाननी वर्षगांठ पण आजे छे. भगवान जन्म्या त्यारे आत्मज्ञान
तो साथे ज हतुं; पछी आ छेल्ला अवतारमां केवळज्ञान प्रगट करीने परमात्मा थया
तेमणे पोताना आत्माने केवो अनुभव्यो, अने केवो उपदेश्यो? तेनी वात आ
समयसारनी पंदरमी गाथामां छे. आत्माने अनुभवनारुं भावश्रुत ज्ञान कहो के
जिनशासन कहो, तेनी आ वात छे. जिनशासननी एटले के आत्माना शुद्ध स्वभावनी
कोई अचिंत्य महिमा छे. विकल्पनी साथे एकता तूटीने निर्विकल्प वेदनथी आत्मानो
अनुभव थाय ते जैनशासन छे. आवी अनुभूति ते आत्मा ज छे. आत्मानो अनुभव
करतां तेमां समस्त जिनशासननी अनुभूति आवी गई. शुद्धआत्माने जाण्यो तेणे
भगवानना सर्व उपदेशने जाणी लीधो एटले के जिनशासनने जाणी लीधुं.
आत्मानो जे सहज एकरूप स्वभाव, ते स्वभाव तरफ झुकेली पर्याय, तेमां
सामान्यज्ञाननो आविर्भाव छे, ने विशेषरूप भेदनो तिरोभाव छे, एटले के ते
अभेदना अनुभवमां भेद रहेता नथी. ज्ञाननी एकतानो अनुभव तेने सामान्यनुं
प्रगटपणुं कह्युं. आवा ज्ञाननी अनुभूति भगवाने करी ने जगतने तेवी अनुभूतिनो
उपदेश दीधो. ईन्द्रिय