
स्वभाव तरफ झूकेली निर्मळ ज्ञानपर्यायमां प्रकाशे छे. आ महावीरनो सन्देश छे के
अंतर्मुख ज्ञानवडे आत्माने अनुभवो. अंतर्मुख ज्ञानवडे आत्मा जीवे छे, ए रीते
आत्माने जीवाडो. आवुं खरूं जीवन भगवाने बताव्युं छे. आ सिवाय देहथी, खोराकथी
के रागथी आत्मा जीवतो नथी. आत्माना जीवन माटे रागनी के खोराकनी जरूर नथी.
चैतन्यप्राणथी स्वयं आत्मा जीवे छे. आत्मानुं आवुं जीवन प्रगट करे तेने ज साचो वीर
कहेवाय छे. ‘खरेखरो ए ज्ञायकवीर गणाय जो.’
रोकाय ते पण शुद्धआत्माने जाणी शकता नथी. ईन्द्रियोथी पार, रागथी पार, अंतर्मुख
ज्ञानवडे आत्माने अनुभववो ते भगवान महावीरनो मार्ग छे. आवा अनुभवनुं
साधन शुं? के तेनुं साधन थवानी ताकात पण तारामां ज पडी छे; बीजुं बहारनुं कोई
साधन गोतवुं नहीं पडे. भगवान आत्मा पोते रागप्रवृत्तिथी जुदो पडीने ज्ञानमां प्रवर्ते
त्यारे ज आत्मानी साची अनुभूति थाय छे ने मिथ्यात्व मटे छे. ज्ञानी तो ज्ञानमां
प्रवर्ततो थको रागने पण जाणे छे, पण रागने जाणतां पोते रागमां तन्मय थईने
वर्ततो नथी. ज्ञान साथे एकाकार थईने ज्ञानाकारे ज्ञान थयुं, तेमां सामान्यज्ञाननो
आविर्भाव कह्यो. जे विशेषरूप ज्ञान छे ते पण रागादिथी जुदुं ज छे. रागथी पार
स्वसंवेद्य आत्मा छे, तेने स्वानुभवमां बीजा कोईनी अपेक्षा नथी. आवा आत्मानो
अनुभव कर्यो तेना फळमां भगवानने एवी परमात्मदशा प्रगट थई के –
अनंत दर्शन ज्ञान अनंत सहित जो.
तो सदाय एकरूप छे. आवुं अपूर्व महिमावंत कार्य जेनाथी प्रगट्युं ते कारणनो महिमा
पण अपूर्व ज होय ने! राग अने ईन्द्रियज्ञान कांई तेनुं कारण न थई शके.