: २६ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९६
स्वागत वखते, प्रवचन वखते तेमज हरेक प्रसंगे अहींना समाजनी
शिस्तबद्धता खरेखर प्रशंसनीय छे. अहींना समाजनो मोटो भाग (बहेनो पण)
शास्त्रनो अभ्यास धरावे छे ने शास्त्रसभामां सौ भाग ले छे.
स्वागत–प्रवचनमां श्री अभयकुमारजी चवरे ए कह्युं के–सौराष्ट्रके
आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजीस्वामीजीका परिचय भारतके हर कोनेमें
रहनेवाले अध्यात्मप्रेमी जैनोंको है। समयसार पढनेके बाद आपकी
सत्यशोधक वृत्तिको आनंद हो सका। इस महान ग्रंथराजसे स्वामीजीने
शाश्वतसुखका मार्ग पाया; और प्रभावक प्रवचनों द्वारा शाश्वतसुखके मार्गको
सारे जैनसमाजके सामने समीचीन द्रष्टिसे रखा। आपकी समीचीन ज्ञानद्रष्टि
सारे समाजके लिये भारी उपकार कर रही है।
इस अवसर पर ‘आत्मख्याति ग्रंथकी सर्वप्रथम छपाई कारंजा शहरमें
हुई थी’ इस बातका स्मरण होने पर हर्ष होता है। यह पू. आचार्य श्री
अमृतचन्द्रजीकी समयसार पर लिखी हुई संस्कृत टीका है। इस टीकामें शुद्ध
अध्यात्मकी चर्चा है।
आज आपके शुभदर्शनका, व शुद्धद्रष्टि प्रदान करनेवाले प्रवचनोंका
लाभ हम कारंजावासी भाई–बहनोंको मिल रहा है यह हमारे सौभाग्यकी
बात है। अतः बङे ही हर्ष भरे दिलसे हम आपका स्वागत करते है।
संघनो उतारो महावीर ब्रह्मचर्याश्रममां हतो. शहेरथी बे माईल दूर
विशाळ शांत स्थळमां आ आश्रम आवेलो छे. व्यवस्था घणी सारी छे; सो
उपरांत बाळको सादाई भरेला जीवन साथे धार्मिक संस्कारो प्राप्त करे छे.
आश्रमना एक मोटा होलमां मोटा सम्मेदशिखर पर्वतनी स्थापना छे;
जिनमंदिरमां बे खड्गासन सुंदर प्रतिमा छे; अने भंडकमां विविध रत्न मणिना
तेमज सुवर्णना कुल २० जेटला प्रतिमाजी बिराजे छे. आ उत्तम प्रतिमाओ
गुलबर्ग पासे अकलंक स्वामीनी जन्मभूमि मान्यखेटपुर (जेने हाल मलखेड कहे
छे) त्यांना एक प्राचीन मंदिरना खंडेरना भंडकमांथी ई. स. १९३९ मां
समंतभद्रजी महाराजने प्राप्त थया हता ने तेमणे आ कारंजा आश्रममां
बिराजमान करेल छे. आ आश्रमना बाळको समक्ष गुरुदेवे पा कलाक धार्मिक
वातचीत करी हती. अहींनी बीजी संस्था कंकुभाई श्राविकाश्रम छे, त्यां पण
गुरुदेव पधार्या हता. आ आश्रम द्वारा पण बाळकोमां उत्तम संस्कारो अपाय छे.