Atmadharma magazine - Ank 319
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 29 of 54

background image
: वैशाख : २४९६ आत्मधर्म : २७ :
बपोरे समयसारनी ११ मी गाथा उपर प्रवचन करतां गुरुदेवे कह्युं के आ
गाथामां जैन सिद्धांतनुं रहस्य छे. कुंदकुंद आचार्यदेव आ भरतभूमिमां बे हजार वर्ष
पहेलां थया; तेओ मद्रासथी ८० माईल दूर पोन्नूर (सोनानो डुंगर) पर रहेता हता
ने ध्यान करता हता. तेओ अहींथी विदेहक्षेत्रमां सीमंधर परमात्मा पासे जईने आठ
दिवस रह्या हता अने भगवाननी वाणी सांभळीने आ भरतक्षेत्रमां आव्या.
आत्मानो घणो अनुभव तेमने हतो. एवा आचार्य भगवाने आ समयसार वगेरे
शास्त्रो रच्यां छे. शुद्धात्मानुं अलौकिक वर्णन तेमां छे. आ रीते सिद्धान्तनी उत्पत्ति केम
थई ते बताव्युं.
आत्मानुं साचुं स्वरूप शुं छे? ते जाणीने तेनो अनुभव करवो ते धर्म छे, ते
मोक्षमार्ग छे. जेटला व्यवहारना विकल्पो छे ते अभूतार्थ छे; गुण–गुणी भेदना
विकल्परूप व्यवहार ते पण भूतार्थआत्मा नथी, तेना वडे आत्मा अनुभवमां आवतो
नथी. शुभराग ते आत्माना चेतनस्वभावमां असद्भुत छे. एकला राग तरफ झुकेलुं
ज्ञान ते पण साचुं ज्ञान नथी. एकलो चिदानंद स्वभाव रागथी पार छे, ते स्वभावना
आश्रयथी ज सम्यक् श्रद्धा थाय छे. जातिस्मरण के दुःख–वेदना वगेरे कारणोथी
सम्यक्त्व थवानुं कहेवुं ते व्यवहार छे, खरेखर ज्यारे अंतरमां एकरूप आत्मानुं
अवलंबन करीने सम्यग्दर्शन प्रगट करे त्यारे ज बीजा बधा कारणोने व्यवहारकारण
कहेवाय छे; ए सिवायना एकला व्यवहारकारणोथी कोईने सम्यग्दर्शन थतुं नथी.
पर्यायने गौण करी छे, पण ते आत्मामां छे ज नहीं–एम नथी; सर्वथा पर्याय
न होय तो एकांत वेदांत जेवुं थई जाय. पर्याय छे, पण शुद्धात्माना अनुभवमां
पर्यायनो भेद नथी. व्यवहार छोडवो एटले कांई पर्यायने छोडी देवी एम नथी, पण
अभेदस्वभावनो आश्रय करीने भेदनो आश्रय छोडवो, ते सम्यग्दर्शन छे, तेमां
आत्माना आनंदनो स्वाद आवे छे.
सम्यक् श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र आत्माना मुख्य गुण छे. जेम अग्निमां पाचक,
प्रकाशक अने दाहक एवी त्रण शक्ति छे; पाचकशक्ति अनाजने पकावे छे, प्रकाशक
शक्ति प्रकाश आपे छे ने दाहकशक्ति लाकडा वगेरेने बाळे छे; तेम आत्मानी श्रद्धाशक्ति
आखा शुद्धआत्माने भूतार्थद्रष्टिमां पचावे छे एटले के श्रद्धामां स्वीकार करे छे; प्रकाशक
एवी ज्ञानशक्तिथी ते स्व–परने प्रकाशे छे; तथा दाहकरूप चारित्रशक्तिवडे आठ कर्मोने
तेमज रागादि परभावोने बाळीने नष्ट करे छे. आवा स्वभाववाळो आत्मा छे. ते
आत्माने शुद्धनय वडे ओळखे त्यारे सम्यग्दर्शन थाय छे.