Atmadharma magazine - Ank 319
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९६
जन्म–मरणथी जेने बहार नीकळवुं होय तेनी आ वात छे. जेनुं हृदय
व्यवहारमां ज मोहित छे ते पोताना एकरूप शुद्धात्माने नथी देखतो, पण अनेकरूप
एवा रागादि परभावोने ज देखे छे; ते जीवोने आत्मानुं सम्यग्दर्शन थतुं नथी अने
जन्ममरणथी छूटता नथी. जो अंतरमां द्रष्टि करीने आत्माना असली स्वभावने देखे
तो सातमी नरकनो नारकी पण सम्यग्दर्शन पामी शके छे. एवुं सम्यग्दर्शन पामेला
असंख्यात जीवो त्यां छे. अने जो आवा आत्मानी श्रद्धा न करे तो भगवानना
समवसरणमां बेठेलो जीव पण सम्यग्दर्शन पामतो नथी ने मिथ्याद्रष्टि ज रहे छे.–
बहारनो संयोग शुं करे? अंतरमां भूतार्थ स्वभाव छे तेने न पकडे ने परभावने ज
पकडे तो ते जीव अभूतार्थ एवा व्यवहारमां मग्न छे. एकक्षण पण व्यवहारनो पक्ष
छोडीने अंतरमां रागथी पार चिदानंद स्वभावने पकडे तो सम्यग्दर्शन थाय, ने जन्म–
मरणनो अंत आवे.
चारगतिना दुःखोथी छूटीने आनंदधाम एवा निजनगरमां प्रवेश करवानो आ
अवसर छे; तेमां हे जीव! तुं प्रमादी थईश मा.
कारंजामां रात्रे तत्त्वचर्चा पण सारी चालती हती. बे दिवसनो कार्यक्रम पूरो
थतां माह वद ९ नी सवारे जिनेन्द्रदेवना दर्शन करीने कारंजाथी शिरपुर (अंतरीक्ष
पार्श्वनाथ) तरफ प्रस्थान कर्युं. वच्चे बासीम गामथी त्रण माईल पहेलां अनसिंग
नामना एक गाममां त्यांनां पद्मप्रभ विद्यालयना शिक्षको अने विद्यार्थीओए स्वागत
कर्युं अने त्यां स्वाध्याय मंदिरनी शरूआत माटे गुरुदेवना आशीर्वाद मांग्या; ‘“ सहज
चिदानंद’ एवा मंगलसूचक हस्ताक्षरपूर्वक गुरुदेवे कह्युं के आत्मा पोते ज्ञानविद्यास्वरूप
छे; तेने भूलीने शरीरने के रागादि परभावोने पोताना मानवा ते अविद्या छे अने
निजभावने ओळखवो ते सम्यक्विद्या छे, आवी विद्या ते मोक्षनुं कारण छे.
एकत्वनो आनंद जंगलमां एकला केम गोठे?
मुनिओने वनमां एकला एकला केम गोठतुं
हशे?–तो कहे छे के अहो! ए एकला नथी, अंतरमां
अनंत गुणोनो एमने साथ छे. बहारनो संग छोडीने
अंतरमां आत्माना अनंत गुणो साथे गोष्ठी करी तेमां
अपूर्व आनंद छे, तो केम न गोठे? आनंदमां कोने न
गोठे? आत्माना अनंत गुणो साथे गोष्ठी करता तेमां
अनंत आनंद छे.