: वैशाख : २४९६ आत्मधर्म : २९ :
आत्मानी वात सूक्ष्म छे –
पण समजी शकाय तेवी छे
[राजकोट शहेरमां गुरुदेव १प दिवस रह्या, ते वखतना प्रवचनोमांथी
केटलोक भाग गतांकमां आप्यो हतो; विशेष अहीं आपवामां आव्यो छे.)
आत्माना स्वभावनी आ वात सूक्ष्म छे; सूक्ष्म छे पण न समजाय एवी नथी;
जिज्ञासाथी समजवा मांगे तेने समजाय तेवी छे, अने आ समजवाथी परम हित छे.
आत्मानी समजण वगर बीजी कोई रीते हित नथी. अहा, केवळज्ञानी थईने
लोकालोकने जाणवानी जेनी ताकात, ते एम कहे के मारा स्वरूपनी वात मने न
समजाय–ए ते कांई एने शोभे छे? पोते पोताना स्वरूपनी वात केम न समजी शके?
अंतरमां द्रष्टि करतां पोतानुं स्वरूप पोताने साक्षात् समजवामां आवे छे, ने साक्षात्
अनुभव थाय एवी आ वस्तु छे. समज्या वगर एम ने एम मानी लेवानी वात
नथी, पण जाते समजीने अनुभवी शकाय एवी आ वात छे. पोताना स्वानुभवथी
प्रमाण करवानुं आचार्य देवे कह्युं छे.
आ जगतमां अनंत आत्माओ भिन्न भिन्न बिराजे छे; तेमां दरेक आत्मा
चैतन्यमूर्ति आनंद धाम छे; विकाररूपे थवुं ते तेनो स्वभाव नथी; पवित्रपणे परिणमवुं
ते एनो स्वभाव छे. आवा स्वभावने भूलीने अज्ञानी रागादिभावोना
कर्ताभोक्तापणे परिणमे छे. समकिती पोताना निर्मळ ज्ञानभावरूपे परिणमे छे; रागादि
भावोनुं जे परिणमन छे तेना स्वामीपणे के तेमां तद्रूप थईने धर्मी परिणमतो नथी.
निर्मळ परिणति थई तेने शुद्धउपयोग अथवा शुद्धउपादान कहेवाय, तेमां रागादि
अशुद्धभावोनुं कर्तापणुं नथी. पोताना आत्माने ज्ञानरूप जाण्यो–अनुभव्यो ते जीव
ज्ञानथी विरुद्ध भावोने पोतारूपे केम अनुभवे? अने पोताथी जेने भिन्न जाण्यां तेनो
कर्ता–भोक्ता ते केम थाय? जेम आंख पोताथी भिन्न द्रश्यवस्तुनी कर्ता–भोक्ता नथी,
मात्र देखनार ज छे, तेम धर्मीनां ज्ञानचक्षु पोताथी भिन्न सर्व भावोने करतुं–भोगवतुं
नथी, मात्र जाणे ज छे, एटले के शुद्ध ज्ञानभावरूप ज रहे छे. आवुं ज्ञानभावरूप
परिणमन ते ज मोक्षनो मार्ग.
पाप के पुण्यमां तन्मयपणे परिणमवुं ते तो मिथ्यात्व छे, ते अज्ञानीनुं
परिणमन छे. धर्मीए वस्तुस्वभावने जाण्यो एटले के ज्ञानस्वभावरूप स्वधर्मने जाण्यो
त्यां शुद्धतारूप परिणमन थयुं, ते सुखरूप परिणमन छे, ते आनंदरूप छे, ते ज्ञान–