: ३० : आत्मधर्म : वैशाख : २४९६
रूप छे, आवुं जे परिणमन थयुं तेमां रागादि कोई भावो नथी; ते रागादि भावोमां
चेतनपणुं नथी. आवा ज्ञानपरिणमनने भगवाने मोक्षमार्ग कह्यो छे; ते ज धर्म छे.
आनंदरसनुं धाम आत्मा तेनी सन्मुख थईने तेनुं वेदन करवुं ते शास्त्रनुं
तात्पर्य छे.
आत्मामां बे स्वभाव–एक ध्रुवभाव; बीजो क्षणिक भाव; तेमां ध्रुवभाव जे
त्रिकाळ एकरूप छे तेने जोतां बंध–मोक्ष नथी; बंधन टाळवुं ने मोक्षदशा प्रगट करवी
एवा भेद ध्रुवमां नथी. एटले पारिणामिक भावरूप जे ध्रुव छे ते बंध–मोक्षरूप नथी,
बंध–मोक्षना कारणरूप पण नथी. बंध–मोक्ष अने तेनां कारणो पर्यायमां छे. ते पर्याय
औदयिक–क्षायिकादि चार भावरूप होय छे.
द्रव्यरूप पारिणामिकभाव, पर्यायरूप चार भाव,–आवा द्रव्य–पर्याय बंनेनुं
जोडकुं ते आत्मवस्तु छे. आत्मा पोते द्रव्य–पर्यायरूप वस्तु छे. द्रव्य अने पर्याय एवा
बंने भावरूप आखो आत्मा छे; ते प्रमाणज्ञाननो विषय छे.
द्रव्यनयनो विषय ते पण एक अंश छे, ने पर्यायनयनो विषय ते पण एक
अंश छे. शुद्धनय पोते पर्याय छे पण ते अखंडद्रव्यने विषय करे छे, त्यां नय अने तेनो
विषय अभेद थई जाय छे. आवा अभेदआत्मानी प्रतीत ते सम्यग्दर्शन छे. ‘आ
शुद्धनय, अने आ तेनो विषय’ एवा भेद अनुभूतिमां नथी.
अवस्थानो काळ एक समयनो; पण आत्मा कदी अवस्था वगरनो थई जतो
नथी, समये समये नवी अवस्थारूपे ते परिणम्या ज करे छे. सिद्धदशामांय अवस्था छे.
अवस्था ए कांई बहारनी उपाधि नथी, आत्मानुं ज स्वरूप छे. पण एक पर्याय जेटलो
ज आखो आत्मा नथी, द्रव्य–स्वरूपे एकरूप ध्रुव टकनारो आत्मा छे; तेना आश्रये
थयेली निर्मळ परिणति ते मोक्षमार्ग अने मोक्ष छे.
रागमां एकताबुद्धिरूप ताळां तोड तो चैतन्यना खजाना खूली जाय. तने
आत्मानी प्रभुता सन्तो बतावे छे. बहिरात्मदशा, अंतरात्मदशा, परमात्मदशा ए त्रणे
आत्मानी पर्यायो छे, त्रणे अवस्था वखते द्रव्यस्वभाव एकरूप छे.
भाई, दुनियानी वात समजवा माटे तेमां रस लईने तुं ऊंडो ऊतरे छे, तो आ
तारा आत्माना वैभवनी वात समजवा माटे तेमां रस लईने तुं ऊंडो ऊतर, तो कोई
अपूर्व वस्तुनो तने तारामां अनुभव थशे. बाकी रागनी ने पुण्य–पापनी वातो