Atmadharma magazine - Ank 319
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९६ आत्मधर्म : ३१ :
ते तो स्थूल छे, अनंतवार अज्ञानभावे करेली छे. पुण्य–पापथी भिन्न एवो चैतन्यभाव
ओळखीने मोक्षमार्ग प्रगट करवो ते अपूर्व छे.
मोक्षमार्गमां त्रणभाग लागु पाडया, पण ज्ञाननी अपेक्षाए तो सम्यक्
क्षयोपशम भाव ज छे. ज्ञाननो क्षायिकभाव थतां केवळज्ञान थाय छे.
सिद्धना आत्मामां पण सक्रियपणुं ने अक्रियपणुं बंने छे. ध्रुवअपेक्षा ए ते
अक्रिय छे; ने पर्यायना उत्पाद–व्यय अपेक्षाए ते सक्रिय छे. पर्यायनो पलटो होवो ते
कांई दुःख नथी. वच्चे मोह होय तो दुःख होय. (प्र. गा. ६० मां कहे छे के अरिहंतोने
खेद नथी, केमके मोह नथी.)
[भाख्यो न तेमां खेद जेथी घातीकर्म विनष्ट छे.]
द्रव्य छे ने पर्याय नथी, अथवा पर्याय ज छे ने द्रव्य नथी–एम मानवुं ते
एकांत मिथ्यात्व छे. जीवना द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेने एक साथे सर्वज्ञ भगवाने जाणी
लीधा छे; तेमणे ज जीवनुं यथार्थ स्वरूप कह्युं छे.
आमां मोक्षनुं कारण बताव्युं. ध्रुवधाम सन्मुख एकाग्र थयेली परिणति ते
मोक्षनुं कारण छे; देहनी क्रिया नहि, राग नहि. आ दुःखथी छूटीने सुखनो अलौकिक
मार्ग छे. पोताना द्रव्यमां पोतानी पर्यायने वाळवी ते ज सुख; आ रीते सुखनो मार्ग
पोतामां ज छे, ने पोते ज सुख छे.
पहेलां स्वसन्मुख थतां आनंदना अंशनुं वेदन थाय छे ने तेनी साथे सम्यक्
प्रतीत थाय छे के आवो आखो आनंद हुं छुं. पर्याय आत्मामां नथी एम कहे तेने
आत्मानो अनुभव होई शके नहीं. अनुभव ते पर्याय छे. सिद्धने पण पर्याय छे.
चैतन्यने पोताना स्वघरमां आववुं तेमां बोजो शो? उल्टुं परभावनो बोजो
उतारीने हळवो थई जाय–तेवुं छे.
घंटीना द्रष्टान्ते वस्तुनी समजण
(लोकोने अघरूं लागतां घंटीना बे पडनुं द्रष्टांत आपीने गुरुदेवे समजाव्युं)
एक घंटीमां बे पड; तेमां स्थिर पडनी साथे फरतुं पड स्पर्शीने घसाय त्यारे लोट
थाय छे, ते पड आघुं रहे तो लोट थतो नथी. तेम द्रव्य–पर्यायस्वरूप आत्मा वस्तु; तेमां
परिणमती पर्यायने स्थिर द्रव्यमां भेळवीने अभेद करे त्यारे आनंद प्रगट थाय छे; ते
पर्याय बर्हिवलणमां रहे, दूर रहे, एटले के द्रव्यथी जुदी रहे तो