त्यारे आनंदनो अनुभव थाय छे.–आवो आत्मानो स्वभाव छे.
–तो तेमां अनाज दळाय नहीं. फरवुं ने स्थिर रहेवुं बंनेरूप घंटी छे. तेम आत्म वस्तुमां
स्थिर रहेवुं ने परिणमवुं–बंने भावो छे; बंने थईने वस्तु छे आखी वस्तु स्थिर नथी के
आखी वस्तु परिणमती नथी. स्थिर रहेवुं ने परिणमवुं बंनेरूप वस्तु छे. आखी वस्तु
स्थिर रहे के आखी वस्तु परिणमे तो तेमां सम्यग्दर्शनादि कार्य थई शके नहीं.
हता. आत्मामां जे रमे तेने राम कहेवाय. भगवान रामचंद्रजी आवा निजानंदस्वरूप
आत्माने जाणता हता ने पछी राजपाट–संसार छोडी, साधु थई, आतमराममां रमतां–
रमतां केवळज्ञान प्रगट करीने सर्वज्ञपरमात्मा थया. एवा रामने ओळखीने पूजवा
योग्य छे.
नीचे उतारीने मारा गजवामां राखुं. एटले चंद्र तरफ हाथ लांबा करीने तेने नीचे
उतारवानी चेष्टा करवा लाग्या. अंते स्वच्छ दर्पणमां चंद्रनुं प्रतिबिंब देखीने समाधान
कर्युं. तेम आतमराम एवा साधक धर्मात्मा चंद्र जेवा पोताना सिद्धपदने प्रगट करवा
चाहे छे; पण सिद्ध कांई उपरथी नीचे न आवे. एटले साधक पोताना स्वच्छ
ज्ञानदर्पणमां सिद्धना प्रतिबिंबरूप पोताना शुद्धआत्माने देखीने, तेना श्रद्धा–ज्ञान–
अनुभव वडे सिद्धपदने साधे छे. सिद्धपणुं पोताना आत्मामां ज देखे छे.