Atmadharma magazine - Ank 319
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 36 of 54

background image
: ३४ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९६
भावनगर––महोत्सव समाचार * (पृ. ८ थी चालु)
शुद्धआत्माका अनुभव करना यही श्रेष्ठ कार्य है.
पोतामां आनंदनो अनुभव थाय, अने मोक्षना भणकार वागे.
जिसकी पास ज्ञानचेतना है, वह धन्य है, उनको हमारा नमस्कार है
(९) ऋषभदेव भगवानका आदेश कया है?
ऋषभ कहे छे रे जीवो...करजो आतमज्ञान,
आतमज्ञानथी पामशो...तमे पदवी मोक्ष महान.
आ प्रमाणे माताजीनो समय देवीओ साथे धर्मचर्चा सहित आनंदपूर्वक वीती
रह्यो छे.
(चै. व. १३) प्रवचन बाद सांजे १०८ कलशोनी जलयात्रा नीकळी हती. रात्रे
भक्तिगीतनो कार्यक्रम हतो.
चैत्र वद १४ नी वहेली सवारमां ईन्द्रना दरबारमां एकाएक तीर्थंकरजन्मसूचक
मंगल चिह्नो प्रगट्या, ईन्द्रासन कंपायमान थयुं ने भगवान ऋषभदेवनो जन्म थवानुं
जाणीने ईन्द्रे बालतीर्थंकरने नमस्कार कर्या; ईन्द्रे तेमज ईन्द्राणीओए नीचेना शब्दोथी
पोतानो हर्ष–आनंद अने भक्ति व्यक्त कर्या:–
१. अहो, भरतक्षेत्रनी अयोध्या नगरीमां आजे तीर्थंकर भगवाननो अवतार
थयो छे. भगवान ऋषभदेव आ भरतक्षेत्रमां मोक्षना दरवाजा खोलशे. धन्य एमनो
अवतार! तेमनो अवतार आखा विश्वने माटे आनंदकारी छे.
२. आकाशमांथी जाणे आनंदना फूल वरसी रह्या छे.
३. अहा, दश दश भवथी शरू करेली आत्मसाधना भगवान आ भवमां पूरी
करशे, ने परमात्मा थईने मोक्ष पधारशे.