जेठ : २४९६ आत्मधर्म : १३ :
मिथ्याद्रष्टि जीवोनुं चित्त आपने भजी शकशे नहीं. सम्यग्द्रष्टि ज आपने खरेखर
भजे छे.
१६. सवारे समयसार गा. ३१ मां भगवाननी निश्चयस्तुतिनी वात छे, ते
निश्चयस्तुति तो राग वगरनी छे, आत्माना अनुभवरूप छे; अने आ पद्मनंदी
पच्चीसीमां ओळखाणपूर्वकनी व्यवहारस्तुतिनुं वर्णन छे; ते व्यवहारस्तुति
शुभरागरूप छे, तेमां परनो आश्रय छे. धर्मीजीवने सर्वज्ञ भगवान प्रत्ये
आदर–भक्तिनो भाव आवे छे.
१७. सर्वज्ञ भगवान केवा होय? ने आ आत्मानुं स्वरूप केवुं छे? तेनी ओळखाण
करवी जोईए. नानपणथी ज आत्मामां तेना संस्कार नांखवा जोईए. १६
वर्षनी वयमां श्रीमद् राजचंद्र लखे छे के–
हुं कोण छुं? क्यांथी थयो? शुं स्वरूप छे मारूं खरूं?
कोना संबंधे वळगणा छे? राखुं के ए परिहरुं?
एना विचार विवेकपूर्वक शांतभावे जो कर्या,
तो सर्व आत्मिक ज्ञाननां सिद्धांत–तत्त्वो अनुभव्यां.
भाई, आवो मनुष्य अवतार पामीने आत्मतत्त्वनो विचार तो कर.
१८. श्रीमद् राजचंद्रजी आ पद्मनंदीशास्त्रने ‘वनशास्त्र’ कहेता हता. वनमां वसनारा
वीतरागी मुनिराजे आ शास्त्र रच्युं छे. मुनिराज अंदर आनंदना धाममां
वारंवार जईने निर्विकल्प आनंदनो स्वाद लेता हता.–एवा दिगंबर मुनिराज,–
जाणे के अत्यारे ज ऋषभदेव भगवान अरिहंतपदे समवसरणमां बिराजमान
होय ने तेमनी समीपमां पोते तेमनी स्तुति करता होय! एवा उत्तम भावथी
भगवाननी स्तुति करे छे.
‘जय ऋषभ नाभिनन्दन.......
१९. वीतराग भगवाननी स्तुति कोण करे?
जेणे रागथी भिन्नतानुं भान कर्युं होय ते ज वीतरागनी स्तुति साची करे. जेणे
रागथी भिन्नतानो अनुभव न होय ते वीतरागनी स्तुति करी शके नहीं, केम के
वीतरागताने ते ओळखतो ज नथी. आ तो साची ओळखाण पूर्वकनी भक्ति छे.