: १४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९६
२०. भगवान केवा छे एने पण घणा लोको ओळखता नथी. भगवान ते तो
सर्वज्ञपदने पामेला आत्मा छे. तेओ जगतना पदार्थोना त्रणकाळना ज्ञाता छे,
पण पदार्थोना कर्ता नथी. वस्तु अनादिअनंत स्वयंसिद्ध छे, तेनो कोई
बनावनार नथी.
२१. कोई एम कहे के अमुक वस्तुने (जीव के अजीवने) में नवी बनावी;–तो एनो
अर्थ ए थयो के तेना पहेलां ते वस्तुनुं जे अस्तित्व हतुं ते तेणे जाण्युं नथी,
एटले ते सर्वज्ञ नथी. आ रीते वस्तुनुं कर्तापणुं माने तेने वस्तुना अनादि–
अनंत अस्तित्वनी खबर नथी एटले ते सर्वज्ञ नथी. परनी कर्ताबुद्धि होय त्यां
सर्वज्ञपणुं तो न होय, ने सर्वज्ञना स्वरूपनी साची ओळखाण पण न होय.
रागादि परभावनो जे जाणनार छे ते तेनो कर्ता नथी अने जे कर्ता थाय छे ते
जाणनार नथी.
२२. सर्वज्ञ भगवानने अनंत गुणनो पूर्ण वैभव खीली गयो छे; तेमने ओळखीने
पोतामां तेनो थोडोक अंश प्रगट करवो ते ज भगवाननी स्तुति छे; एटले के
सम्यग्दर्शन ते ज सर्वज्ञनी प्रथम स्तुति छे.
२३. स्तुतिकार कहे छे के हे भगवान! ईन्द्रो आपना चरणमां ज्यारे नम्या त्यारे
आपना चरणना नखनी प्रभा वडे तेमना मुगट झगमगी ऊठ्या; एटले
ईन्द्रना मुगटनी शोभा पण आपनां चरण वडे ज छे, खरी शोभा मुगटनी नहि
पण आपना चरणनी छे; एटले के आपना वीतरागी चरण पासे ईन्द्रादि
पुण्यफळ पण अमने तुच्छ लागे छे. अहो, ईन्द्रो पण भक्तिथी जेने पूजे एना
महिमानी शी वात! आवो महिमा ओळखीने वीतराग भगवानने जे भजे छे
ते धन्य छे.
२४. ‘नमो अरिहंताणं’–अरिहंतोने नमस्कार हो आ नमस्कार ते गुणवाचक छे
आत्माना सर्वज्ञतादि गुणो प्रगट करीने जेमणे राग–द्वेष मोहरूप अरिने हण्या
ते अरिहंत छे. अनंता जीवोमांथी जे कोई जीव सर्वज्ञतादि गुणो प्रगट करे तेने
अरिहंत कहेवाय छे, ते ज परमेश्वर छे, ते ज साचा देव छे. एवा वीतराग
देवनुं स्वरूप ओळखीने तेमनी स्तुति केम थाय तेनुं आ वर्णन छे.
२५. भाई, आ जन्म–मरणथी मुक्त थवानी ने आनंदमय मोक्षपद पामवानी कोई
अलौकिक रीत छे. संसारना रागना रसनी आडमां जीवने पोतानुं सत्य स्वरूप
लक्षमां आव्युं नथी. आत्मानुं स्वरूप पामेला साचा देव केवा होय? तेने