: जेठ : २४९६ आत्मधर्म : १प :
साधनारा गुरु केवा होय? ने ते कहेनारा शास्त्र केवा होय? एनी
ओळखाण करवी जोईए. नमस्कार मंत्रमां ते देव–गुरुने नमस्कार कर्या छे.
पांचे परमेष्ठीपद ते आत्मानी शुद्धदशा छे, ते वीतरागविज्ञानमय छे तेनी
ओळखाण पण वीतरागविज्ञानवडे ज थाय छे.
२६. आत्मानी दिव्यशक्तिने प्रगट करे ते देव; आत्माना शुद्ध स्वरूपने साधे–
अनुभवे ते साधु. आत्माना ज्ञान वगर साधुपणुं होय नहीं. साधु एटले
मोक्षनो साधक, आत्माना शुद्धस्वरूपनो साधक. तेओ अंतर्मुख थईने
चैतन्यना आनंदनो स्वाद ल्ये छे.
२७. अज्ञानीने नथी आत्माना आनंदनो स्वाद, के नथी जडनो स्वाद ए तो
अद्धरथी राग–द्वेषनी कल्पनाओ करीने विकारनो–झेरनो स्वाद ल्ये छे, ते
दुःख छे, संसार छे. संसार ए कांई बहारनी कोई वस्तु नथी, शरीरमां–
घरमां जीवनो संसार नथी, जीवनो अज्ञानमय भाव ते ज संसार छे. अने
भेदज्ञान वडे शुद्ध ज्ञानआनंददशा प्रगटे ते ज मोक्ष छे. संसार अने मोक्ष
बंने जीवनी ज दशामां छे.
२८. स्वरूपनी अप्राप्ति ते संसार; स्वरूपनी प्राप्ति ते मोक्ष. अनादिथी स्वरूपनी
प्राप्ति केम न थई, ने हवे स्वरूपनी प्राप्ति केम थाय? ते वात संतोए
शास्त्रमां बतावी छे. जड–चेतननुं भेदज्ञान करीने जेमां आनंदनी छोळ
ऊछळे एवा ज्ञानने ज साचुं ज्ञान कहेवाय छे. भेदज्ञान वगर बहारना
एकला जाणपणामां जीवने शांति के आनंद नथी, अने जेमां आनंद न होय
तेने साचुं ज्ञान कहेता नथी.
२९. देहथी भिन्न आत्मानो आनंद जेणे देख्यो नथी एने दीक्षा केवी? दीक्षा ए
तो घणी वीतरागी अनुभवदशा छे. मुनिवरो वारंवार अंतरमां उपयोगने
एकाग्र करीने निजानंदने अनुभवे छे. आत्मा ज्ञानप्रकाशनो पूंज छे,
रागादि परभावोथी एनी भिन्नताना तीव्र अभ्यास वडे भेदविज्ञान प्रगट
थाय, पछी तेमां घणी एकाग्रता थतां देह उपर वस्त्रादि धारणा करवानो
मोह पण छूटी जाय, एवी वीतरागदशा थाय त्यारे मुनिदीक्षा होय छे. ते
महा आनंदरूप छे. बाकी आत्माना ज्ञान वगर तो शुभराग करीने–
मुनिव्रतधार अनंतवार ग्रीवक उपजायो,
पै निजआतमज्ञान बिन सुख लेश न पायो.