: २२ : आत्मधर्म : जेठ : २४९६
* अरिहंत परमात्मानी साची स्तुति *
(८१ बोल; पृ. १६ थी चालु)
३५. भावेन्द्रिय एटले के ईन्द्रियविषयो तरफ झूकेलुं खंडखंडरूप ज्ञान, ते पण
आत्मानुं खरूंस्वरूप नथी; अनुभवमां आवतो जे एक अखंड ज्ञायक स्वभाव,
ते खंडखंड ज्ञानरूप नथी, एटले ते भावेन्द्रियोथी भिन्न छे. आवी भिन्नतानुं
भान ते सर्वज्ञदेवनी साची स्तुति छे. सर्वज्ञनी स्तुति स्वसन्मुखताथी थाय छे.
३६. अहा, चैतन्य वस्तुनी आवी वात, तेनुं श्रवण मळवुं ते पण महाभाग्य छे.
अमृतथी भरेलो समुद्र आत्मा, तेनो जेने प्रेम जाग्यो तेनुं अपूर्व कल्याण छे.
अहीं बे विधि चाले छे–एक तो प्रतिमाजीमां परमात्मानी स्थापना
(प्राणप्रतिष्ठा) करीने तेने पूजवानी विधि चाले छे; ने बीजुं–आ आत्मा पोते
ज सर्वज्ञपद प्रगट करीने परमेश्वर केम थाय तेनी विधि कहेवाय छे.
३७. दीक्षावनना वैराग्यभीना वातावरणमां मंगल प्रवचन करतां गुरुदेवे कह्युं–
भगवान ऋषभदेव आज मुनि थया; तेओ दीक्षा लीधा पहेलां, तेमज
दीक्षा लीधा पछी पण वैराग्यनी बार भावना भावे छे. अहो, आवी मुनिदशा
अलौकिक छे. धर्मी तेनी भावना भावे छे के–
अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे! क्यारे थईशुं बाह्यांतर निर्ग्रंथ जो.....
३८. चैतन्यना भानपूर्वक तेमां एकाग्र थतां देहनी पण मूर्छा छूटी गई, अंतरमां
मोहरहित दिगंबर दशा ने बहारमां पण वस्त्ररहित दिगंबरदशा–एवी
मुनिदशानी अनादि स्थिति छे. चैतन्यना आनंदना उग्र अनुभवमां मुनि लीन
होय छे. एवी मुनिदशा आजे भगवाने संसारनी क्षणभंगुरता देखीने धारण
ज
अविनाशीपणे ध्रुव अने शरण छे. आवा आत्मामां लीन थईने केवळज्ञान
साधवा भगवान ऋषभदेव आजे मुनि थया. आवी मुनिदशाने ओळखीने तेनी
भावना करवा जेवी छे.
[‘अपूर्व अवसर’ काव्य द्वारा कहानगुरु ते मुनिदशाने अत्यंत वैराग्यपूर्वक
भावी रह्या छे, परम महिमावंत मुनिदशानुं घोलन चाली रह्युं छे, ने