Atmadharma magazine - Ank 320
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९६ आत्मधर्म : २३ :
वैराग्यवनमां पांचहजार उपरांत श्रोताजनो शांतचित्ते ए वैराग्यभावनामां
झूली रह्या छे,...एककोर मोटा वडला नीचे मुनिराज ऋषभदेव निजध्यानमां
लवलीनपणे बिराजी रह्या छे, चार ज्ञाननुं तेज मुद्रा उपर चमकी रह्युं छे. अहा,
अमे तो अमारा आनंदना समुद्रमां मग्न छीए...आवा वातावरण वच्चे
वैराग्यवनमां गुरु कहान कहे छे के–
]
३९. आत्मा अंदरमां शांतिनो सागर छे तेमां एवा एकाग्र थईए के बहारमां सिंह
आवीने शरीरने खाता होय तोपण तेनुं लक्ष न जाय...जगतना पदार्थोनो
स्वभाव क्षणभंगुर छे, तेमां अमने समभाव छे, सडवुं–गळवुं ते तो पुद्गलनो
स्वभाव छे, अमे तो तेना ज्ञाता छीए. आम ज्ञानस्वभावनी भावनाथी तेमां
एकाग्र थईने मोहनो नाश करीने अमारुं केवळज्ञाननिधान अमे प्रगट करीशुं.
अमारा चैतन्यपदने साधीने अमे केवळज्ञान प्रगट करशुं ने अशरीरी सिद्धपदने
साधशुं.
४०. अरे, आ संसारमां तो आत्माना चिदानंदस्वभाव सिवाय बीजुं बधुंय मंदिर
मकान–मूर्ति–शरीरादि कांई पण नित्य नथी; ए तो बधा काळना ईंधण छे.
संसारना पदार्थो अने ते तरफना भावो तो क्षणभंगुर छे. आत्मा नित्यानंदनो
नाथ छे. माताए जोया पहेलां पुत्रना शरीरने अनित्यता लागु पडी गई छे,
आत्मा ज आनंदकंद अविनाशी छे. तेना श्रद्धा–ज्ञान–रमणता करवा ते ज
जगतमां सार छे.
४१. बपोरे सर्वज्ञ भगवाननी साची स्तुतिनुं (निश्चयस्तुतिनुं) स्वरूप समजावतां
कह्युं के आत्मा शुद्ध ज्ञानचेतनागुण वडे अन्य समस्त द्रव्योथी सर्वथा जुदो छे;
शुद्धज्ञानचेतनारूप आत्माना अनुभव वडे समस्त अन्य द्रव्योथी भिन्नपणे
पोताने जाण्यो, एटले परसाथे एकताबुद्धिरूप मोहने जीती लीधो, ते आत्मा
जितेन्द्रिय–जिन छे; तेणे सर्वज्ञनी साची स्तुति करी.
४२. आ जीवने माटे पोतानो उपयोगस्वरूप आत्मा ज ध्रुव छे, बीजुं बधुं अध्रुव छे.
कोईनो संयोग नित्य रहेतो नथी. पवित्र ज्ञानचेतनाथी परिपूर्ण आत्मा छे,
तेनो अनुभव करतां परद्रव्यमां क्यांय मोह रहेतो नथी. ज्ञानचेतनामां रागनो
पण अभाव छे. ज्यां आवी चेतनारूपे आत्माने अनुभव्यो त्यां, जड
द्रव्यईन्द्रियो खंडखंड ज्ञानरूप भावेन्द्रियो, तेमज तेना विषयरूप बाह्य पदार्थो–
ए त्रणेयथी