Atmadharma magazine - Ank 320
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९६
एक साथे भिन्नपणुं थयुं. आ आत्मानी ज्ञानचेतना सिवाय बीजुं कांई, मंदिर–
मूर्ति–शास्त्र के बीजा आत्माओ ते कांई, आत्माना स्वमां नांखवा जेवुं नथी,
ए बधां तो परज्ञेयो छे. आवा अनुभव वडे ज सर्वज्ञनी साची स्तुति थाय छे.
४३. भाई, आवा आत्मा सिवाय बीजुं कांई तने शरण नथी. नेमनाथ तीर्थंकर
ज्यारे आ भरतक्षेत्रमां विचरता हता, श्रीकृष्ण अने बळभद्र जेवा वीरयोद्धा
ज्यारे द्वारिकाना राजा हता, त्यारे द्वारिकानगरी आगमां भडभड बळीने खाख
थवा लागी... कृष्ण अने बळभद्र पोताना माता–पिताना रथने पण दरवाजानी
बहार काढी न शक्या. ज्यां स्थिति पूरी थाय त्यां कोण तेने रोके? ए तो बधाय
ज्ञानना विषयो छे, तेमनाथी ज्ञाननी तद्न भिन्नता छे. अनित्य संयोगने
कायम टकाववा मांगे, पण जीव तेने टकावी शके नहीं, संयोगोथी अधिक एटले
के जुदो एवो असंयोगी अविनाशी चेतना–गुणे पूरो हुं छुं–एम धर्मी अनुभवे
छे.
४४. प्रभु! आ तारा सूक्ष्म चैतन्यतत्त्वनी ज वात संतो तने समजावे छे. आवा
तत्त्वने समज्या वगर बीजा ऊंधा उपाय करी करीने संसारमां अनंत युग
वीत्या, पण पंथनो पार न आव्यो. साची समजणनो मार्ग ल्ये तो संसारनो
अंत आव्या वगर रहे नहीं. पुण्यपरिणाम अनंतवार कर्या पण एनाथी कांई
भवनो अंत न आवे. भाई! जन्म–मरणने टाळीने मोक्ष पामवाना मारगडा
कोई अलौकिक छे.
४५. जोनारो जे ज्ञानस्वभाव पोते, ते पोते पोताने न जाणतां, ज्ञानना विषयरूप
एवा नीकटवर्ती जे बाह्य ज्ञेयो देव–गुरु–शास्त्र के स्त्री–शरीर–लक्ष्मी तेमनी साथे
एकता माने छे. ज्ञानस्वभावना अनुभव वडे भिन्नता जाणवी ते धर्म छे.
४६. ‘समयसार’ एटले शुद्ध आत्मा, ते कदी बळे नहीं, तेने आग लागी न शके;
अरे, कषायअग्निनो कणियो पण एनामां नथी. समयसार एटले शुद्ध आत्मा,
तेना असंख्य प्रदेश कदी करमाय नहीं, तेनी ज्ञानचेतनामां रागरूपी अग्नि
प्रवेशी शके नहीं. बहारना जडना संयोग तो आवे ने जाय, पण समयसार
एवो भगवान आत्मा पोताना चेतनस्वभावे अविनाशीपणे बिराजी रह्यो छे.
आवो आत्मा बाह्य विषयोथी दूर छे, जुदो छे. आवी ओळखाण ते भगवाननी
निश्चयस्तुति छे.