Atmadharma magazine - Ank 320
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९६ आत्मधर्म : २७ :
नथी, ते तो पोतानी गतिथी चाल्यो जाय छे; तेम निज स्वरूपने ध्येय बनावीने
मोक्षना रस्ते चाल्यो जतो मुमुक्षु, वच्चे झाडनी छाया जेवा अध्रुव भावोमां
अटकतो नथी; ते तो ध्रुव उपयोगरूप आत्माना ध्येय मोक्षपुरी तरफ चाल्यो
जाय छे...आनंदनुं वेदन करतो करतो ते पोताना सिद्धपदने साधे छे.
५८. जेम बीजनो चंद्र ऊग्यो ते वधीने पूर्णिमा थाय छे; तेम अंर्तस्वभावने ध्येय
बनावीने जे ज्ञानबीज आनंद सहित ऊगी, ते स्वभावना ज ध्येये आगळ
वधीने पूर्ण आनंद सहित पूर्णिमा थशे.
५९. एक अखंड ज्ञायक स्वभावी आत्मा छे, तेनुं ज्यारे वेदन करे छे त्यारे
द्रव्येन्द्रियोथी पोताने भिन्न अनुभवे छे. अज्ञानी पोताना ज्ञानने परज्ञेयो साथे
भेळववानुं मानीने खीचडो करे छे, अने पोताना भिन्न ज्ञानना स्वादने भूली
जाय छे. ज्ञानना भान वगर व्यवहार रत्नत्रयनो शुभराग करे तो पण
अज्ञानने लीधे ते जीव पापमां ज पडेलो छे, केमके निजस्वरूपथी ते पतीत
थयेलो छे; जिनना मार्गनी तेने खबर नथी.
६०. अहो, जिननो मार्ग अलौकिक छे. ए तो स्वभावना आश्रयरूप वीतरागमार्ग
छे, तेमां पराश्रय नथी. परनी अपेक्षा वगर ज्ञानस्वभावे भरेलो भगवान
आत्मा, तेनुं जेने भान छे ते मोहने जीतनारो जिन छे. ते जिनमार्गमां आव्यो;
तेणे पोतानी प्रभुता पोतामां ज जाणी.
६१. समंतभद्रस्वामी कहे छे के हे नाथ! सम्यग्द्रष्टि ज आपनी खरी स्तुति करनार
छे. रागमां एक्तावाळो जीव वीतराग भगवाननी स्तुति केम करी शके? हुं
ज्ञान छुं–एवुं जेने भान नथी, ज्ञाननो जेने अनुभव नथी ते ज्ञानस्वभावनी
पूर्णताने पामेला भगवाननी स्तुति क्यांथी करशे? हुं ज्ञानस्वभाव छुं–एवा
अंतरना अनुभव वडे जेटलुं चिंतवे एटलुं मळे तेम छे; आखुं परमात्मपद
अंदरमां भर्युं छे.
६२. अहो, आवा परमात्मपदनुं स्मरण ने चिंतन करवा जेवुं छे. आवा चैतन्यपदना
चिंतनथी संसार आखो भूलाई जाय छे. आत्माना परम चैतन्यपदने लक्षमां
लईने ज्यां स्वानुभवरूप सिंहनाद कर्यो त्यां कर्मरूपी बकरां ऊभा रहेता नथी.
धर्मी पोताना आत्माने कर्मोथी अत्यंत जुदो अनुभवे छे, ने कषायथी पण जुदो