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जिन थयो, समकिती थयो.
पोषे ते वीरनी वाणी नहीं, ए तो कायरनी वाणी छे.
जीव बहारमां परवस्तुनी भीख मांगे छे, एटले के परचीज होय तो मने सुख
मळे एम माने छे ते जीव पराधीन भीखारी छे, थोडुंक मांगे ते नानो मांगण,
झाझुं मांगे ते मोटो मांगण; ने पोतानी पूर्ण चैतन्यसंपदाने जाणीने बीजुं कांई
न मांगे ते मोटो बादशाह छे. (आ न्याय सोनगढमां भावनगरना महाराजा
कृष्णकुमारसिंहजी आव्या त्यारे कह्यो हतो; आजे वैशाख सुद बीजे भावनगरमां
वीरभद्रसिंहजी प्रवचनमां आवतां ते न्याय कह्यो.)
बतावी शके. (विरक्त गुरुमां दिगंबर मुनिराज मुख्य छे.)
बहारनुं बीजुं जाणपणुं कदाच ओछुं होय पण जो अंतरमां रागथी भिन्न
चैतन्यविद्याने जाणे छे तो ते जीव अल्प काळमां त्रण लोकनी प्रकाशक एवी
केवळज्ञानविद्या प्रगट करीने भवसमुद्रथी तरी जशे.
ने रागमां धर्म मानीने रागनी खाण खोदवा रोकायो; पण एकवार जडथी भिन्न
रागथी भिन्न एवी तारी चैतन्य खाणमां ऊंडो ऊतर तो तारा चैतन्यना
अपूर्व निधान तने तारामां ज देखाशे ने परम आनंद थशे.