: ३० : आत्मधर्म : जेठ : २४९६
विनाशीक छे. जन्म्या पहेलां ज तेने क्षणभंगुरता लागु पडी गई छे. अंदर
विज्ञानघन तत्त्व देहथी जुदुं छे. ते विज्ञानघन तत्त्वने अनुभवमां लेतां धर्म
थाय छे; बीजा कोई उपाये धर्म थतो नथी.
७७. समयसारमां आत्माना जे भाव भर्या छे ते भाव अनादिना छे, अनादिनो जे
वस्तुस्वभाव छे ते समयसारमां कह्यो छे. समयसारना शब्दो भले विनाशीक
हो, पण तेना वाच्यरूप जे शुद्धात्मा–समयसार छे तेनो कदी नाश थतो नथी, ने
कषायअग्निमां ते बळतो पण नथी. कषायनो जुदो शांतरसथी भरेलो
ज्ञानानंदस्वरूप आत्मा छे.
७८. चारगतिरूप जे दुःखनो दरियो, तेनाथी छूटवा आत्माना स्वभावनुं अवलंबन
ले, तेमां ज शांति अने सुख छे.
७९. जन्मने हुं जाणुं, जन्म मारो नहीं; मरणने हुं जाणुं मरण मारुं नहीं; देहने हुं
जाणुं, देह हुं नहीं; रागने हुं जाणुं, राग हुं नहीं; पर्यायने हुं जाणुं पण पर्याय
जेटलो ज हुं नहीं; एक अखंड ज्ञानानंदतत्त्व हुं छुं.–आवुं यथार्थ ज्ञान करवुं ते
भवथी छूटवानो ने मोक्षनी प्राप्तिनो उपाय छे.
८०. पोताना चैतन्यस्वभावनी अपूर्व वात कदी जाणी नथी एटले जीवने ते नवी
लागे छे. भाई, तारुं स्वरूप ज प्रभु छे, ते तने बतावीए छीए. तेनी हा पाडी,
रुचि करी अनंता जीवो अनुभव करी मोक्षमां गया; माटे तुं पण आत्माना
स्वभावनी आ वात अपूर्व भावे सांभळ, तेने लक्षगत करीने अनुभवमां ले,
तो तने परमआनंद सहित मोक्षदशा खीली जशे.–ते मंगळ छे.
८१. सीमंधर जिनवर नमुं, आदिनाथ सुखकार;
वीतराग सेवा वडे ऊतरुं भवथी पार.
भावनगरमां शोभतो उत्सव मंगलकार;
देखी आनंदित ‘हरि’ बोले जयजयकार.