Atmadharma magazine - Ank 320
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९६ आत्मधर्म : ३१ :
पोताना स्वाधीन छकारकथी आत्मा निजभावने करे छे.
आत्मा पोताना निजभाव सिवाय बीजुं कांई करतो नथी.

जिन भगवाननो उपदेश एम छे के–आत्मा खरेखर पोताना निजभावने ज करे
छे एटले ते निजभावनो ज कर्ता छे; ए सिवाय पुद्गलकर्मनो ते कर्ता नथी. आनाथी
विरुद्ध माने तो ते जिन भगवाननो उपदेश नथी. जडकर्मने आत्मा करे, के आत्माना
भावोने जडकर्म करे–एम भगवाने कह्युं नथी. जीवनुं कर्ताकर्मपणुं स्वतंत्र पोतामां छे,
अजीवनुं कर्ताकर्मपणुं स्वतंत्र पोतामां छे. आवी स्वतंत्रता जाणीने भेदज्ञान करवुं ते
भगवाननो मार्ग छे.
जीवना विकार भावमां कर्म निमित्त छे, अने कर्ममां जीवनो विकारभाव निमित्त
छे, परंतु खरेखर एकबीजानां कर्ता नथी. जीवनो विकारभाव कर्मे नथी कराव्यो, ने
कर्मनी अवस्था जीवे नथी करी, पोतपोताना कारकोथी बंनेनुं स्वतंत्र परिणमन छे.
आत्मा पोताना भावने छोडीने बीजुं कांई पण करतो नथी.
णमो लोए सव्व आइरियाणं–एम पंचपरमेष्ठिना त्रीजा पदमां जेमनुं स्थान छे
एवा आचार्य कुंदकुंदस्वामीनुं आ कथन छे; तेमणे विदेहमां जईने त्यांना जीवंतस्वामी
सीमंधर तीर्थंकरनो साक्षात् उपदेश सांभळ्‌यो हतो, ने भरतक्षेत्रमां सद्धर्मनी महान
वृद्धि करी हती; तेओ भगवाननी साक्षी आपीने कहे छे के–आत्मा पोताना निजभावने
ज करे छे, पुद्गलने करतो नथी–एवा जिनवचनने हे जीवो! तमे जाणो.
निश्चयथी कर्ता–कर्म वगेरे कारको अभेद होय छे. जीवना छकारको जीवमां होय
छे. कार्य जीवमां ने तेनो कर्ता अजीवमां–एम होतुं नथी; भिन्न भिन्न वस्तुमां कारको
होतां नथी, एक ज वस्तुमां कर्ता–कर्म–साधन वगेरे होय छे. आत्माना सम्यक्त्वादि
भावनुं साधन आत्मामां ज छे, तेम आत्माना रागादि विकारी भावोनुं साधन–कर्ता
वगेरे पण आत्मामां ज छे, जड कर्मनुं तेमां कांई ज कर्तव्य नथी. ते ज वखते पुद्गल
कर्मनी अवस्थानुं कर्तापणुं–साधन वगेरे पुद्गलमां ज छे, जीव तेनो कर्ता नथी.–आ
वीतरागी भेदज्ञाननो महा सिद्धांत छे.
पोतानी अशुद्ध के शुद्ध पर्यायने आत्मा पोते धारण करे छे एटले आत्मा पोते
तेनो कर्ता छे. शुद्धस्वभावनी द्रष्टिमां आत्मा रागादिनो कर्ता नथी, पण ज्यारे