: ३२ : आत्मधर्म जेठ : २४९६
बे द्रव्योनुं (जीव–अजीवनुं) भेदज्ञान करवुं होय त्यारे जीवना रागादिभावोनो कर्ता
जीव ज छे–एम जाणवुं जोईए.
जीवने केवळज्ञानपर्याय थाय छे तेनुं साधन पण जीव ज छे, केमके केवळज्ञाननुं
साधन थाय एवी शक्ति जीवमां छे. ज्ञानावरणकर्मनो अभाव ते जीवनी केवळज्ञान–
पर्यायनुं साधन–एम खरेखर नथी. तेमज जीवनी पर्याये साधन थईने पुद्गलमां
ज्ञानावरण अवस्थानो नाश कर्यो–एम पण नथी. जीवमां केवळज्ञाननी उत्पत्ति, ते ज
समये कर्ममां ज्ञानावरण अवस्थानो अभाव, एम बंने समकाळे एक साथे थवा छतां,
जीव अने पुद्गल बंने पोतपोताना ज भावना कर्ता छे, बीजानुं कर्ता कोई नथी.
निमित्त–नैमित्तिकपणुं होवा छतां बंने वच्चे कर्ता–कर्मपणुं नथी, के कोई बीजानुं साधन
नथी. वस्तुना कर्ता–कर्म–साधन वगेरे बधा कारको वस्तुमां पोतामां ज होय छे, वस्तुथी
भिन्न होतां नथी. भाई! ज्यां कार्य थाय छे त्यां ज तेनुं साधन शोध, कार्यथी भिन्न
वस्तुमां तेनुं साधन न शोध. तारा केवळज्ञाननुं साधन परमां न शोध; तेमज तारा
रागादि अपराधनो दोष बीजा उपर न ढोळ. पोतानी शुद्ध के अशुद्ध पर्यायरूपे पोताना
ज छ कारकोथी स्वयमेव परिणमतो जीव अन्य कोई कारकनी अपेक्षा राखतो नथी.
अहो, वस्तुस्वरूपनुं आवुं भेदज्ञान ते वीतरागतानुं कारण छे. मुमुक्षुजीव
आवा भेदज्ञानवडे जिनआज्ञारूप मार्गने पामीने सम्यग्ज्ञानज्योति प्रगट करे छे,
अने ते ज्ञानवडे परभावोनुं कर्ता–भोक्तापणुं समाप्त करीने, एकला ज्ञानमार्गने ज
अनुसरे छे (अर्थात् शुद्ध ज्ञानचेतनारूपे ज परिणमे छे,) अने शुद्धआत्मानी
प्राप्तिरूप मोक्षनगरने पामे छे.
(पंचास्तिकाय गा. ६२)
अमेरिकाना आपणा सगांसंबंधी माटे–
आपणा मुमुक्षुसमाजना अनेक सगांसंबंधी अमेरिका वगेरे परदेशमां वसे
छे; तेमांथी कोई–कोई आत्मधर्म मंगावीने वांचे छे ने दूरदेशमां आवुं वीतरागी–
साहित्य तथा भारतना धार्मिकसमाचारो वांचीने खुशी थाय छे. आ वात सर्वे
मुमुक्षु भाई–बेनोने सूचववानी एक जिज्ञासु भाईए प्रेरणा आपी के भारतना जे
जे जिज्ञासुओना सगांसंबंधी परदेशमां वसता होय तेओ सौ पोतपोताना
स्नेहीजनोने आत्मधर्म जरूर मोकले. ते माटे दीवाळी (कारतक) अंक सुधीनुंं एर–
पोस्ट सहितनुं लवाजम (अमेरिका माटे रूा. २२ बावीस) सोनगढ नीचेना
सरनामे मोकली आपे. बीजा देशो माटे ओफिसमां तपास करवी.
–आत्मधर्म कार्यालय सोनगढ (सौराष्ट्र)