(१) उत्तम जीवन एटले शुंं? (२) उत्तम जीवननी प्राथमिक भूमिका केवी
करीने पैसा–मोटर–बंगला प्राप्त करशुं अने मोटा होद कीर्ति मळशे. बस! एमां ज
अमारा जीवननी सार्थकता! पण हवे, पू. गुरुदेवनी आत्मस्पर्शी वाणीनो जे बोध
आत्मधर्म द्वारा मळे छे ते उपरथी नक्की थाय छे के उपरनी मान्यतावाळुं जीवन ते
कांई उत्तम जीवन नथी; ते तो खरेखर आत्मानुं जीवन ज नथी, ते तो जडनुं
जीवन छे; जडना संयोगोमां कांई जीवनुं जीवन नथी. आत्मानुं उत्तम जीवन कोई
अलौकिक होवुं जोईए. जगतना सामान्य जीवो जडमां सुख मानीने जे जीवन जीवी
रह्यो छे ते उत्तम जीवन नथी, पण ज्ञानीओ जडथी भिन्नता जाणीने जे ज्ञानमय
जीवन जीवे छे ते ज जीवन उत्तम छे. केवुं छे ते जीवन? अंदर अनंत–अनंत
जीवनशक्तिने धारण करनार जे चैतन्यद्रव्य त्रणे काळे बिराजमान छे, तेना उपर
ज्ञानउपयोगनी एकाग्रता थतां सुख–आनंद आदिना परम स्वादनुं वेदन थाय
एटले पूर्वे कदी जे प्राप्त नथी थयुं तेवुं आनंद सहितनुं जीवन प्रगटे, ते ज उत्तम
जीवन छे, ते ज सुखी जीवन छे. आवा उत्तम जीवन माटेनी प्राथमिक भूमिका केवी
होय? तेनो पण आपणे विचार करवो पडशे.