Atmadharma magazine - Ank 320
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९६
माटे उत्तम जीवन जीवनारा एवा वीतरागी देव–गुरु तथा शास्त्रनी श्रद्धा करीने,
तेओ आत्मानुं शुं स्वरूप बतावे छे ते बराबर लक्षपूर्वक ग्रहण करवुं जोईए. तेनी
रुचि, संसार तरफ उदासीनता, वगेरे पण उत्तम प्रकारनां होवा जोईए. विशेषमां–
देव–गुरु–शास्त्र जे शुद्धस्वरूप त्रिकाळी स्वरूप बतावी रह्या छे ते मारी पासे ज छे.
हुं ज ते छुं; शरीरआकारे पण शरीरथी भिन्न एवुं मारुं ज्ञानस्वरूप अत्यारे मारी
पासे मोजुद छे. –एम पोताना ज्ञानमां निजस्वरूपनो पाको निर्णय अफर निर्णय
करवो. मारुं स्वरूप क्यांय बहारमां नथी, शरीरमां नथी, रागमां नथी, के अंदरना
भेदविकल्पो पण मारुं स्वरूप नथी; मारुं स्वरूप एटले के मारुं जीवन ते त्रिकाळी
चैतन्यभावमय छे. आवा स्वरूपनो ज्ञानमां निर्णय करीने अंदरमां वारंवार तेना
अनुभवनो अभ्यास, ते ज उत्तम जीवननी प्राथमिक भूमिका छे. आवी सत्य
भूमिकामां पण जीव पूर्वे कदी आव्यो नथी. माटे मुमुक्षुए प्रथम निजस्वरूपनो
निर्णय करीने उत्तम जीवन माटे तेनो प्रयत्न करवो.
(३) उत्तम जीवननी प्राप्ति
जे बीजा पोईन्टमां प्राथमिक भूमिका माटे ज्ञानमां स्वरूपनो निर्णय
करवानी वात आवी ते निर्णय साथे हजी विकल्प पण छे; अनुभव पहेलां एवो
विकल्प पण रहे छे, छतां ते विकल्प उपर द्रष्टि राखवानी नथी,–एटले तेनी महत्ता
नथी, पण वर्तमान ज्ञान जे त्रिकाळी स्वरूपनो विचार करे छे ते त्रिकाळी स्वरूपनी
महत्ता करीने, तेमां एकमेक एकाकार थई जवानुं छे. आ रीते स्वभाव तरफ ढळता
ज्ञाननी मुख्यता छे, विकल्पनी मुख्यता नथी. मुमुक्षु जीव आवा ज्ञानना जोरे
निजस्वभावमां ओतप्रोत एवो थई जाय छे के विकल्पथी दूर खसीने आत्मानुं
प्रत्यक्ष (निर्विकल्प) स्वसंवेदन थई जाय छे; वारंवार पोताना स्वभावमां एकाग्र
बनवामां तेनी रुचि, तेनो उल्लास एकदम बळवानपणे काम करे छे; तेनो उपयोग
त्रिकाळीस्वभाव तरफ ज वारंवार अग्रेसर थाय छे. वीर्यना आवा स्वसन्मुख
उल्लासमां विकल्प तूटीने निर्विकल्प आनंदनो अनुभव थई जाय छे. अहाहा! ते
सुख अने ते आनंदनुं आ जड शब्दो द्वारा शुं वर्णन थई शके? क्यां चेतनना सुख–
आनंद, अने क्यां आ जडना शब्दोनी रचना! छतां टूंकमां–अपूर्व–अपूर्व आनंदनी
प्राप्ति थाय छे. अहो, धन्य ते पळ! ते ज उत्तम जीवन छे. आ धन्य पळ ते ज
जीवनुं खरूं जीवन छे, अने त्यांथी ज उत्तम जीवननी शरूआत थाय छे. ते जीव
धन्य–धन्य बनी जाय छे.