समान छे. मात्र मनुष्यपणुं के उत्तम कुळ वगेरे मळवुं ते कांई उत्तम जीवन नथी, परंतु
स्वद्रव्यनी समजण अने आनंदना अनुभव सहितनुं जीवन ते ज सत्य जीवन छे, ते ज
उत्तम जीवन छे.
श्रावकपणुं ने मुनिपणुं प्राप्त थाय छे; अने तेनाथी पण विशेष सुखनी वृद्धि उत्तरोत्तर
वधती जाय छे त्यारे वीतरागदशा ने अरिहंत पदनी प्राप्ति थाय छे, त्यारपछी
सिद्धपदनुं सर्वोत्कृष्ट जीवन प्राप्त थाय छे. आवा सर्वोत्कृष्ट फळनी प्राप्ति उत्तम जीवन
वडे (एटले स्वानुभवना प्रयत्न वडे) ज थाय छे. अहा! शुं ते जीवननो चमत्कार
छे!–के एक वखत ते उत्तम जीवन प्राप्त थयुं तो पछी तेना फळमां अनंत ज्ञान–दर्शन–
सुखना मोटा वृक्षो फाली नीकळ्या. कई रीते ते जीवननो महिमा करवो? खरेखर
सम्यग्दर्शन सहितनुं वीतरागी जीवन ते ज आदर्श उत्तम आनंदी जीवन छे.
हवे भिन्नताना भान वडे आवुं जीवन प्राप्त थतांवेंत, कर्ताबुद्धिनो जे महान दोष अनंत
संसार रखडावनार छे ते तरत नाश पामे छे, अनादिथी एम मनायुं छे के जड शरीरथी
ज हुं जीवुं छुं, एटले जडनां कार्य हुं करुं छुं, हुं ज तेनो कर्ता छुं, हुं न होउं तो कोई कार्य
न थाय,–आवी अज्ञान मान्यतारूप मिथ्या अभिमान आत्मानी ओळखाण वडे ज टळे
छे. ते टळतां खोटी कर्ताबुद्धिनो नाश थाय छे; अने जीव जे खोटा भारथी भारे भारे
रहेतो हतो ते खोटा भारना नाशथी एकदम हळवो (निराकूळ) बनी जाय छे. तेने
भावमरण छूटीने आत्मजीवन प्राप्त थाय छे. वळी, पुण्य वगेरे रागने धर्म मानी ते
पुण्यनी क्रियाने ज पोतानुं जीवन