Atmadharma magazine - Ank 320
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 37 of 52

background image
: जेठ : २४९६ आत्मधर्म : ३प :
आवा जीवननी शरूआत थतां ते जीव पंचपरमेष्ठी भगवंतोनी पंक्तिमां भळी जाय छे.
आ रीते पोताना आत्माना भान सहितनुं जीवन ते ज खरूं जीवन छे,–पछी ते
मनुष्य हो के तिर्यंच हो. अने जेणे स्वनी समज प्राप्त न करी ते मनुष्य होय तोपण पशु
समान छे. मात्र मनुष्यपणुं के उत्तम कुळ वगेरे मळवुं ते कांई उत्तम जीवन नथी, परंतु
स्वद्रव्यनी समजण अने आनंदना अनुभव सहितनुं जीवन ते ज सत्य जीवन छे, ते ज
उत्तम जीवन छे.
(४) उत्तम जीवननी प्राप्तिनुं फळ अने फायदा
उत्तम जीवननी प्राप्ति थतां ते ज समयथी जीवने सुख अने आनंदनी शरूआत
थई जाय छे; तेनी समये समये वृद्धि थती जाय छे; अने विशेष वृद्धि थतां तेना फळमां
श्रावकपणुं ने मुनिपणुं प्राप्त थाय छे; अने तेनाथी पण विशेष सुखनी वृद्धि उत्तरोत्तर
वधती जाय छे त्यारे वीतरागदशा ने अरिहंत पदनी प्राप्ति थाय छे, त्यारपछी
सिद्धपदनुं सर्वोत्कृष्ट जीवन प्राप्त थाय छे. आवा सर्वोत्कृष्ट फळनी प्राप्ति उत्तम जीवन
वडे (एटले स्वानुभवना प्रयत्न वडे) ज थाय छे. अहा! शुं ते जीवननो चमत्कार
छे!–के एक वखत ते उत्तम जीवन प्राप्त थयुं तो पछी तेना फळमां अनंत ज्ञान–दर्शन–
सुखना मोटा वृक्षो फाली नीकळ्‌या. कई रीते ते जीवननो महिमा करवो? खरेखर
सम्यग्दर्शन सहितनुं वीतरागी जीवन ते ज आदर्श उत्तम आनंदी जीवन छे.
आवुं जीवन प्राप्त थवाना फायदा घणा छे. ज्यारे आवुं जीवन प्राप्त न होतुं थयुं
त्यारे प्रथम महान दोष जे मिथ्यात्व तेने लीधे परना कर्तापणानो भाव रहेतो हतो,
हवे भिन्नताना भान वडे आवुं जीवन प्राप्त थतांवेंत, कर्ताबुद्धिनो जे महान दोष अनंत
संसार रखडावनार छे ते तरत नाश पामे छे, अनादिथी एम मनायुं छे के जड शरीरथी
ज हुं जीवुं छुं, एटले जडनां कार्य हुं करुं छुं, हुं ज तेनो कर्ता छुं, हुं न होउं तो कोई कार्य
न थाय,–आवी अज्ञान मान्यतारूप मिथ्या अभिमान आत्मानी ओळखाण वडे ज टळे
छे. ते टळतां खोटी कर्ताबुद्धिनो नाश थाय छे; अने जीव जे खोटा भारथी भारे भारे
रहेतो हतो ते खोटा भारना नाशथी एकदम हळवो (निराकूळ) बनी जाय छे. तेने
भावमरण छूटीने आत्मजीवन प्राप्त थाय छे. वळी, पुण्य वगेरे रागने धर्म मानी ते
पुण्यनी क्रियाने ज पोतानुं जीवन