Atmadharma magazine - Ank 320
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ४६ : आत्मधर्म : जेठ : २४९६
वांचको साथे वातचीत अने विविध चर्चा
आत्मधर्ममां ‘वांचको साथे वातचीत’ ना आ विभागे वांचकवर्ग साथे सीधो
संबंध जाळवीने जिज्ञासुओमां सारो रस जगाडयो छे, केमके आ विभाग द्वारा
अवनवा केटलाय तात्त्विक प्रश्नोनी छणावट थया करे छे. गुरुदेव पासे चालती
तत्त्वचर्चाओमांथी, कोई शास्त्रोमांथी, तेमज अनेक जिज्ञासुओ द्वारा आवेला प्रश्नो
अनुसार अनेकविध सामग्री अवारनवार आ विभागमां आवे छे. आप पण आ
विभागमां भाग लई शको छो अने जिज्ञासुभावे प्रश्नो पूछी शको छो. आत्मधर्मनी
शैलीने योग्य होय एवा लगभग बधा प्रश्नोना जवाब आपवा प्रयत्न करवामां आवे
छे.
* जेठसुद पांचमना मंगल दिवसे सोनगढमां श्रुतपूजन थयुं हतुं, अने
प्रवचनमां श्री अष्टप्राभृतनुं वांचन शरू थयुं हतुं. (त्यारपहेलां पंचास्तिकाय वंचातुं
हतुं सवारे प्रवचनमां समयसार मोक्षअधिकार वंचाय छे. (अष्टप्राभृत सोनगढमां
मलता नथी, जेमनी पासे होय तेमणे सोनगढ लाववा.)
* जोरावरनगरथी एक विद्यार्थी लखे छे के अमे सोनगढमां धार्मिक कलास पूरो
करीने अहीं आव्या छीए, परंतु अहीं अमने गमतुं नथी, आखो दिवस त्यानुंं
वातावरण याद आव्या ज करे छे. फरीने त्यांनुं वातावरण जल्दी जोवा मळे एम
ईच्छीए छीए. (आवी ज भावनावाळा पत्रो मोरबी वगेरेना विद्यार्थीओ तरफथी पण
आव्या छे.)
* नवीन जैनबाळपोथी खूब ज सुंदर आकर्षक अने सरळ छे. जैनधर्मना दरेक
फिरकामां सौने उपयोगी थाय तेवी छे. विद्यार्थीओने आवा संस्कारनी खास जरूर छे.
ली. महेश जे. जैन मोरबी
* नवी–जैनबाळपोथी राजकोट, वांकानेर, वढवाण, घाटकोपर वगेरे अनेक
स्थळे पाठशाळामां चालु थयेल छे, ने नानां बाळको होंशथी ते भणीने पोतानो उत्साह
बतावे छे. केटलाक बाळकोना पत्रो पण आव्या छे.
* मुकेशभाई वडोदरा (स. नं. १७६प) लखे छे के–आत्मधर्म अंक ३१८मां
नमस्कार मंत्रनी वार्ता, तथा गुरुदेवे आपेलो नावीक अने पंडितनो दाखलो, ते वांचीने
खूब ज गम्युं, अने नवीन उत्साह मळ्‌यो. आ रीते अमने नवीन उत्साह आपता