: जेठ : २४९६ आत्मधर्म : ४७ :
रहो तो सारूं! (भाईश्री, तमारा उत्साह माटे धन्यवाद! अने तमारी पासेथी धार्मिक
वार्ता सांभळी तमारा मित्र एस. जे. पंडयाए जे रस बताव्यो ते माटे तेमने पण
धन्यवाद!
* ‘आत्मधर्म मां अमरकुमारनी अमर कहानी वांचीने घणो ज आनंद थयो.
बाळको पण ते घणी होंशथी वांचे छे. अने अमने तो आखुं आत्मधर्म वांचतां जाणे
मोक्षनगरीमां होईए–एवुं लागे छे.’ –भोगीलाल सोमचंद
* जन्मदिवसनी भेट मळतां गोंडलना स. नं. २४६ प्रमोदथी लखे छे के–अमारा
जन्मदिवसे मळती भेट द्वारा अमने उत्तम शिख मळे छे, सीनेमा अने भौत्तिकवादना
आ जमानामां अध्यात्मरस तथा तत्त्वज्ञाननी रेलमछेल करतुं आत्मधर्म अने तेना
बालविभाग द्वारा अमने खूब प्रोत्साहन आपी रह्या छो; अने अमारा जीवनमां
धर्मना पाया मजबुत करी रह्या छो.
* चामडानी वस्तुनो उपयोग बंध करो–
चामडाने अस्पृश्य गणवामां आव्युं छे. जैनसमाजे चामडानी वस्तुओ बूट–
चंपल–वाजिंत्रो वगेरेनो उपयोग बंध करवो जोईए. अने जिनमंदिरमां पण चामडानी
कोई वस्तुनो प्रवेश होवो न जोईए.
* रेडियानो सदुपयोग
आकाशवाणी (रेडियो) प्रोग्राममां दिल्ही क मीटर नं. २७०.४ उपर प्रत्येक
गुरुवारे सवारे छ वागे वंदना मां जैनधर्मनां भजन वगेरे आवे छे, ते सांभळो.
* जैनबाळपोथीनो बीजो भाग मळ्यो तेथी आनंद थयो, वांचीने वधारे आनंद
थयो; आ बाळपोथी खरेखर बाळकोने तो उपयोगी छे, उपरांत पुख्तवयना तमाम
माणसोने पण उपयोगी छे. धर्मप्रत्येनो आवो अनुराग देखीने आनंद थाय छे अने ते
माटे अभिनंदन छे.’
– जेठालाल मोतीलाल, अमदावाद
* राजकोटना एक मुरब्बी श्री (खुशालभाई कामदार) पोतानी उर्मि व्यक्त
करतां लखे छे–के घणा वखतथी गुरुदेव प्रत्ये भक्तिभाव प्रदर्शित करवा ईच्छा हती, ते
आजे अमलमां मूकुं छुं. गुरुदेव १९८९–९० ना चातुर्मासमां राजकोट पधारेला त्यारे
पहेलवहेलो परिचयमां आवेलो; पछी १९९प मां राजकोटमां दररोज प्रवचनमां जतो,
अने आ जरूर समजवा जेवुं छे एम नक्की करेलुं. गुरुदेवना मुखमांथी झरतां अमृतमां
आत्मानी जे मीठास आवे छे ते मीठास बीजे क्यांय आवती नथी.