: ४८ : आत्मधर्म : जेठ : २४९६
घणो वर्षो पहेला में गुरुदेवने प्रश्न पूछेलो के–अमे अमारी मानेली जे धर्मक्रियाओ
(सामायिक वगेरे) करीए छीए ते धर्म खरो के नहीं? गुरुदेवे हसीने जवाब आपेलो
के भाई, ए बधी क्रियाओने बहु बहु तो शुभ खातेखतवी शकाय. पण धर्म तो कोई
जुदी वस्तु छे. अभ्यास करो तो समजाय तेवुं छे वळी मने घणा मारा मित्रो कहे छे के
तमे तो सोनगढी छो! हुं तेमनो जवाब आपुं छुं के ए मारुं अहोभाग्य छे! जो तमारी
माफक वादविवादमां के संप्रदायना मोहमां पड्या होत तो आत्महितनो सत्यमार्ग अमने
मळत नहीं. आत्मधर्म द्वारा सोनगढमां सोनेरी किरणो आजे भारतना खूणेखूणे
वसता जिज्ञासुओने प्रकाश आपे छे. बाळको पण आत्मधर्म होंशे होंशे वांचे छे. ते
पंदर दिवसे प्रसिद्ध थाय तो सारूं! लक्षपूर्वक ‘आत्मधर्म’ नो अभ्यास करे तो आत्मामां
अजवाळा प्रगटे तेम छे.
अमे संतोना दास
अनुभवी सन्तोने देखीने अमे मात्र हाथ जोडीने बेसी रहीए,
अमे पण एवो अनुभव करशुं...ने
एमना जेवा थईने एमनी साथे रहीशुं
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Aकवार Bहार प्रांतमां Cद्धपदना साधक Dगंबर जैनसंत विचरता हता अने
कहेता हता के Eश्वरपणुं Fक्त आत्मानी शुद्ध Gनदशा छे.
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बालविभागनी चार वात
अनेक कोलेजियन बंधुओ सहित
घणा सभ्यो नीचेनी चार वातनुं पालन
करे छे. आप पण तेनुं पालन करीने
मित्रोमां प्रचार करो–
१ हंमेशा भगवाननां दर्शन करवा.
२ तत्त्वज्ञाननो अभ्यास करवो.
३ रात्रे खावुं नहीं.
४ सिनेमा जोवी नहीं.
बालविभागना सभ्य थवा माटे–
संप्रदायना भेदभाव वगर हजारो
जैन बाळको–विद्यार्थीओ–कोलेजियनो
बालविभागना सभ्य थईने, उत्साहथी
धर्मना अभ्यास वडे जीवनने ऊंचुं लई
जाय छे. सभ्य थवा माटे (कोई फी नथी)
नाम अने पूरुं सरनामुं: उमर, अभ्यास
अने जन्मतारीख अगर तिथि नीचेना
सरनामे लखी मोकलो.
सोनगढ (सौराष्ट्र)