Atmadharma magazine - Ank 320
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म संपादकीय
* केटलाक जिज्ञासुओ सूचवे छे के आत्मधर्ममां लांबा लेखोने बदले टूंका लेखो
आपीने वधु लेखो द्वारा विविधता वधारवी. ज्यारे कोई एम पण ईच्छे छे के टूंका
लेखो करतां लांबा लेखो ज वधु आपवा. बंने प्रकारना जिज्ञासुओने अनुलक्षीने
आत्मधर्ममां विविध लेखोनुं संयोजन करवामां आवे छे. कोई वार त्रीस–त्रीस पानां
भरीने एक ज मोटो लेख आपवो पडे छे, तो कोईवार बे चार लाईनना टचूकडा
लेखमां पण अध्यात्मनुं मधूरुं झरणुं वहेतुं होय छे. दाखला तरीके आत्मधर्ममां एकवार
आव्युं के ‘तुं आत्मामां गमाड!’ मात्र त्रण शब्द अने साडासात अक्षरना टूंका
लखाणमां जाणे के केटलाय शास्त्रोनो नीचोड भरेलो होय एवी आत्मझणझणाटी भरी
छे. ए ज रीते पचीसवर्ष पहेलां एक लेख हतो के ‘हे जीव! तारी प्रभुतानी एकवार
तो हा पाड!’ लेख तो मात्र अडधा पानांनो हतो, पण ते वांचतां जे उल्लासनी
उर्मिओ आत्मामां जागेली तेने जिज्ञासुओ आजे पचीस वर्षे पण नथी भूल्या. तो
क््यारेक क्रमबद्धपर्याय जेवा विषयो, प्रवचनसारनी ८०–८१–८२ गाथा जेवा विषयो,
पंचपरमेष्ठीनुं स्वरूप वगेरे प्रवचनो, प्रभुत्वशक्ति वगेरेनां प्रवचनो, भेदज्ञाननी
विशेष भावना घणा घणा पडखेथी घूंटावनारा केटलाय प्रवचनो, सम्यग्दर्शन माटे
समयसारनी १४४ मी गाथा जेवा विशिष्ट प्रवचनो,–ने एवा बीजा केटलाय महत्वना
विषयोने लगता लेखो एटला विस्तारथी आपवामां आव्या छे के घणीवार तो एक ज
लेखमां लगभग आखो अंक भराई गयो छे. आ रीते टूंका तेमज लांबा बंने शैलीना
लेखोना सुंदर संकलन वडे सर्वे जिज्ञासुओनो रस जळवाई रहे छे. बाकी कोई लखाण
लांबुं होय तो ज तेमां रहस्य भर्या होय ने टूंका लखाणमां रहस्य ओछा होय–एवुं तो
कोई माप होतुं नथी. जिनवाणीनी तो शैली ज अनेरी छे, एनां कथन विस्तृत हो के
टूंका हो, तेमांथी वीतरागीरस ज झरे छे...अने आपणे सौए ए उपशांतरसनुं ज पान
करवानुं छे.
* सर्वे जिज्ञासुओ आत्मधर्मने पोतानुं ज समजीने लाभ लई रह्या छे ने तेनी
प्रभावना तथा उन्नती माटे हार्दिक सहकार आपी रह्या छे. ते पाक्षिक थाय एवी पण
केटलाय वखतथी मोटा भागना पाठकोनी भावना छे. आत्मधर्मनो प्रचार, तेनी शोभा,
तेनी प्रशंसा ए बधुंय गुरुदेव आपणने जे जिनवाणी आपी रह्या छे ते जिनवाणीनी
ज प्रशंसा ने शोभा छे. केमके आत्मधर्म ए कोई लौकिक छापुं नथी पण मुमुक्षुओने
जिनवाणी पीरसतुं अध्यात्मपत्र छे. ‘आत्मधर्म’ द्वारा पण घणा मुमुक्षुओउपर
(संपादक उपर पण) गुरुदेवनो मोटो उपकार थयो छे.