Atmadharma magazine - Ank 320
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९६ आत्मधर्म : ३ :
परम वैराग्य–परिणतिरूप वीतरागचारित्र ते मार्ग छे,
ते परमेश्वरनी आज्ञा छे.
आत्माना ज्ञान–दर्शन स्वभावमां अस्तित्वरूप जे वीतरागचारित्र ते मोक्षनो
हेतु छे. आवुं चारित्र राग वगरनुं होवाथी अनिंदित छे एम जिनभगवाने कह्युं छे.
जीवनो स्वभाव ज्ञानदर्शन छे. ज्ञान–दर्शन जीवथी अनन्य छे. तेओ जीवथी ज
रचायेला छे, एटले के जीव पोते ज्ञान–दर्शनस्वरूप छे. आवा स्वरूपमां ज उत्पाद–
व्यय–ध्रुवतारूप वर्तन ते चारित्र छे, ते मोक्षमार्ग छे, तेमां रागनो अभाव छे, तेथी ते
प्रशंसनीय छे.
रागनो अभाव होवाथी आ चारित्रने प्रशंसनीय–अनिंदित कह्युं, एटले जेमां
रागनो सद्भाव छे ते निंदित छे, ते मोक्षमार्ग नथी–एम तेमां आवी गयुं. रागमां
वर्तनरूप चारित्र तेने परसमय कह्युं छे; तेना वगरनुं स्वभावमां प्रवृत्तिरूप जे चारित्र
छे ते स्वसमय छे; तेने ज साक्षात् मोक्षमार्ग तरीके धारण करवुं.
जीवे साक्षात् मोक्षना कारणरूप आ वीतराग चारित्रने जाण्युं नहीं ने रागादि
परभावने ज मोक्षनुं कारण समजीने तेना सेवनथी संसारमां ज रखड्यो.
भाई! प्रथम तो नक्की कर के जीवनुं स्वरूप शुं छे? राग कांई जीवनुं अनन्य
स्वरूप नथी. जीवनुं स्वरूप तो ज्ञान–दर्शनमय छे ते ज्ञान–दर्शनस्वरूपमां प्रवृत्ति ते
चारित्र छे, तेमां रागनो अभाव छे. आवुं राग वगरनुं चारित्र ते मोक्षनुं कारण छे.
तेने ज परम वैराग्य कहेवाय छे.
आनंदथी समृद्ध एवा भगवान आत्मामां विश्रांति ते चारित्र छे, तेमां
मोक्षसुखनो अनुभव छे; तेमां रागादि आकुळतानो अभाव छे. आवुं वीतरागी चारित्र
ज मोक्षमार्ग छे. खरेखर वीतरागपणुं ते ज साक्षात् मोक्षमार्गमां अग्रेसर छे. अहो,
स्वतत्त्वमां विश्रांति, ते परम आनंदथी भरपूर छे ने रागनो तेमां अत्यंत अभाव छे.
–आवी स्वतत्त्वमां विश्रांति ते ज मोक्षनो मार्ग छे.