: ४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९६
मार्ग एटले परम वैराग्य, करावनारी, परमेश्वरनी परम आज्ञा. अहो, रागनो
अंश पण जेमां नथी एवा परम वैराग्यरूप स्वरूपचारित्र ते ज जिनपरमेश्वरनी परम
आज्ञा छे, ते ज भगवाननो मार्ग छे. राग ते मार्ग नथी, ते भगवाननी आज्ञा नथी.
राग तो परसमय छे, ते भगवाननी आज्ञा केम होय? शुभरागने जे मोक्षमार्ग माने
छे ते जीव भगवाननी आज्ञाने जाणतो नथी. स्वसमयमां प्रवृत्तिरूप परम वैराग्य–
परिणति–के जे आनंदथी भरपूर छे ते ज भगवाननी आज्ञा छे, ने ते ज मार्ग छे.
चारित्रना बे प्रकार–एक स्वचारित्र; बीजुं परचारित्र
स्वसमयरूप स्वचारित्र छे. परसमयरूप परचारित्र छे.
निज स्वभावमां वर्तवारूप स्वचारित्र छे. परभावमां अवस्थित एवुं
परचारित्र छे.
शुभराग पण परभावमां अवस्थितरूप परचारित्र छे, परसमय छे, ते मार्ग
नथी. स्वभावमां अवस्थितरूप जे स्वचारित्र छे ते, परचारित्रथी भिन्न छे एटले
रागथी भिन्न छे, तेथी ते अनिंदित छे. आवा परम वीतराग चारित्रने भगवाने
साक्षात् मोक्षमार्ग कह्यो छे. तेनी भावना करवा जेवी छे.
अरेरे, मोक्षना कारणरूप शुद्ध वीतरागचारित्रने जाण्या वगर, रागने मोक्षनुं
साधन मानीने अनंतकाळ अत्यार सुधी मिथ्यात्व अने रागादिमां ज लीनपणे
वीत्यो,...हवे तो स्वभावमां नियत एवा वीतरागचारित्रनी ज निरंतर भावना करवा
जेवी छे.
उपयोग रागवडे रंजित थाय, चंचळ थाय ते परसमय छे. शुभरागने धारण
करनार जीव पण स्वचारित्रथी भ्रष्ट छे ने परचारित्रने आचरे छे. मोक्षना कारणरूप
चारित्रमां शुभराग आवतो नथी, मोक्षना कारणरूप चारित्र ते तो स्वचारित्र छे, ने
शुभराग तो परचारित्र छे, बंने भिन्न छे. पोताना ज्ञान–दर्शन–स्वभावमां नियत–
निश्चल–स्थिर परिणामरूप चारित्र ते मोक्षमार्ग छे. आ सिवायनी जेटली अशुभ के
शुभ प्रवृत्ति छे ते परचारित्ररूप छे तेथी बंधनुं कारण छे अने ते मोक्षनुं कारण होवानो
भगवाने निषेध कर्यो छे.
शुभभावरूप विकार ते पुण्यास्रव छे, अशुभभावरूप विकार ते पापास्रव छे,
बंने भावो आस्रव छे, पण ते कोई धर्म नथी; ते बंधनुं ज साधन छे, मोक्षनुं साधन
नथी. मोक्षनुं साधन तो रागथी भिन्न एवुं स्वचारित्र छे; अने ते स्वचारित्र पोताना
उपयोग स्वभावना सम्यक् श्रद्धा–ज्ञानपूर्वक तेमां निश्चल एकाग्रता वडे प्रगटे छे.–
आवो मोक्षमार्ग ते ज साचो वीतरागी मोक्षमार्ग छे.
(पंचास्तिकाय गा. १४प)