Atmadharma magazine - Ank 320
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९६ आत्मधर्म : प :
मोक्षहेतु अने संसारहेतु
समयसार बंधअधिकार उपरनां प्रवचनोमांथी
राग वगरना शुद्ध आत्माना स्वानुभवमां जेनी परिणति जोडायेली नथी तेनी
परिणति राग अने पुण्यफळना भोगवटामां ज जोडायेली छे.
अस्ति–नास्तिना न्याये समजावे छे के ज्यां शुद्धात्मानो भोगवटो नथी त्यां
रागनो भोगवटो छे. ज्यां मोक्षमार्ग नथी त्यां बंधमार्ग छे, अने बंधमार्गमां
तो व्यवहारनो एटले के अशुद्धआत्मानो अनुभव छे; जो शुद्धआत्मानो
अनुभव होय तो मोक्षमार्ग होय.
अज्ञानी शुद्धात्माना अनुभव वगर जे कांई करे छे तेमां रागनो ज अनुभव छे
एटले ते संसारनुं ज कारण छे. भले ते व्रत–तपनो शुभराग करे, शास्त्रो भणे,
छतां रागना अनुभव सिवाय बीजुं कांई ते करतो नथी, एटले तेनुं बधुंय
संसारहेतु ज छे, मोक्षहेतु जरापण नथी. रागथी पार एवा शुद्धात्मानो अनुभव
ते ज मोक्षहेतु छे.
केवो अनुभव ते संसारनुं कारण छे?
अशुद्धआत्मानो अनुभव ते भवनुं बीज छे. श्री अमृतचंद्राचार्ये पुरुषार्थसिद्धि
उपायमां एम कह्युं छे के–आ आत्मा कर्मकृत अशुद्ध भावोथी असंयुक्त होवा
छतां, बालिश जीवोने एटले के अज्ञानीओने ते रागादिथी संयुक्त जेवो अशुद्ध
प्रतिभासे छे; तेमनो आ प्रतिभास ज खरेखर भवनुं बीज छे. (गा.–१४)
बीजी रीते कहीए तो एकला व्यवहारनो आश्रय करीने आत्माने जे अशुद्ध ज
अनुभवे छे ते जीव संसारमां ज रखडे छे. अने व्यवहारनो आश्रय छोडीने
शुद्धनय वडे शुद्धआत्माने जे अनुभवे छे ते मोक्ष पामे छे.–आ महान जैन
सिद्धांत छे.
आत्मानी परिणतिने माटे बे बाजु छे–
कां तो अंतर्मुख थईने शुद्धस्वभावमां झुके एटले शुद्धआत्माने अनुभवे; अने
कां तो बीजी बाजु रागादि परभावोमां झुके एटले अशुद्धताने अनुभवे.