: जेठ : २४९६ आत्मधर्म : ७ :
व्यवहार श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र न होय तोपण मोक्षमार्ग टकी रहे छे, केमके
मोक्षमार्ग शुद्धआत्माना ज आश्रये छे, व्यवहारना आश्रये मोक्षमार्ग नथी.
एटले शुद्ध आत्माना आश्रयरूप मोक्षमार्ग ते एक ज मोक्षमार्ग छे, बीजो कोई
मोक्षमार्ग नथी.
आ रीते शुद्धआत्मानो ज आश्रय करावनारो शुद्धनय उपादेय छे–केमके ते
मोक्षनुं कारण छे; अने परना आश्रयरूप अशुद्धनय ते छोडवायोग्य छे,
केमके ते संसारनुं कारण छे.–आवो जैनसिद्धांत समजीने हे जीवो! तमे
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पराश्रित बधाय व्यवहारनो निषेध
प्रश्न:– अज्ञानीनो व्यवहार तो भले मोक्षनुं कारण न होय, पण ज्ञानीनो
व्यवहार तो मोक्षनुं कारण छे ने?
उत्तर:– ना; व्यवहार एटले पराश्रित भाव; जेटलो पराश्रयभाव छे ते बंधनुं
कारण छे;– पछी अज्ञानीनो हो के ज्ञानीनो, पण कोई पराश्रयभाव मोक्षनुं
कारण थतो नथी.
ज्यां शुद्धआत्माना श्रद्धा–ज्ञान–चारित्ररूप निश्चय मोक्षमार्ग छे त्यां पण
नवतत्त्वनी श्रद्धानो विकल्प, शास्त्र तरफनुं ज्ञान के छकाय जीवोनी रक्षानो
शुभराग एवा जे व्यवहार श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रना पराश्रितभावो होय ते
बंधना ज कारण छे, ने तेना आश्रये मोक्षमार्ग नथी, मोक्षमार्ग तो
शुद्धआत्माना ज आश्रये छे. माटे शुद्धआत्मानो ज आश्रय करनारो निश्चय ज
मुमुक्षुने आदरणीय छे, ने पराश्रयरूप व्यवहार बंधनुं कारण होवाथी ते
निषेधवा योग्य छे.
निर्विकल्प अनुभवरूपी चैतन्यगिरि–गूफामां जईने निश्चयरूप शुद्धआत्माने
ध्यावतां, समस्त पराश्रयरूप व्यवहार छूटी जाय छे. आ रीते निश्चयनो आश्रय
कर्यो त्यां व्यवहारनो आश्रय न रह्यो, एटले निश्चयवडे व्यवहारनो निषेध थई
जाय छे. ‘आ व्यवहार छे ने तेनो निषेध करूं’–एम व्यवहार सामे जोईने तेनो
निषेध नथी थतो, पण व्यवहारथी विमुख थई, परनो आश्रय छोडी, ज्यां
शुद्धस्वभावनी सन्मुख थईने ते निश्चयनो आश्रय कर्यो त्यां परसाथे
एकताबुद्धि छूटी ने समस्त पराश्रयरूप व्यवहार छूटी गयो आ रीते निश्चयना
आश्रयमां पराश्रित व्यवहारनो निषेध जाणवो.