(आराधना) तेनाथी रहित ते अपराध छे. ते अपराधी जीव बंधाय छे.
निरपराध छे. ते निःशंक छे के मारा चैतन्यभावमां कोई बंधन छे ज नहीं.
अभाव छे; एटले चैतन्यभावनी अपेक्षाए शुभ–राग पण पारको भाव छे;
छतां शुभरागने पोतामां ग्रहण करे छे ते परभावनी चोरी करे छे, तेथी ते
बंधाय छे.
चैतन्यभावने तो पोतापणे ग्रहण करवो, अने समस्त रागादि परभावोने
पररूपे जाणीने छोडवा.–एम करवाथी शुद्ध आत्मानुं ग्रहण थाय छे, एटले
परभावना ग्रहणरूप चोरी मटीने निरपराधपणुं थाय छे, अने बंधन छूटी
जाय छे. शुद्धात्मारूपे ज पोताने अनुभवनारो जीव बंधनने छेदीने
अल्पकाळमां मोक्षने पामे छे. अने आत्माने अशुद्ध अनुभवनारो जीव
शुभराग वडे पण कदी बंधनथी छूटकारो पामतो नथी, ते बंधाय ज छे.
प्रगट करीने भोगव्या ज करो, पण ते कदी खूटे तेम नथी, आवो आनंदनो
खजानो आत्मा छे. आवा आत्माने अनुभवतो धर्मी जीव मुक्त छे.
थवा देता नथी, बंधभावने पोताथी अत्यंत जुदो ने जुदो राखे छे, तेथी ते
मुक्त छे.