Atmadharma magazine - Ank 321
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 13 of 40

background image
: १० : आत्मधर्म : अषाड : २४९६
अनुभवतो थको अशुद्ध आत्माने ज सेवे छे. शुद्धआत्माना सेवनरूप जे राध
(आराधना) तेनाथी रहित ते अपराध छे. ते अपराधी जीव बंधाय छे.
* निरपराधी कोण छे?
शुद्ध चैतन्यभाव ज हुं छुं–एम पोताने शुद्धपणे अनुभवनार ज्ञानी जीव
निरपराध छे. ते निःशंक छे के मारा चैतन्यभावमां कोई बंधन छे ज नहीं.
* अशुभ रागने तो छोडे–पण शुभरागने चैतन्यनो माने तो?
तो ते पण चोर छे, अपराधी छे, केमके चैतन्यभावमां शुभ रागनो पण
अभाव छे; एटले चैतन्यभावनी अपेक्षाए शुभ–राग पण पारको भाव छे;
छतां शुभरागने पोतामां ग्रहण करे छे ते परभावनी चोरी करे छे, तेथी ते
बंधाय छे.
* ते चोरी केम मटे? ने बंधन केम छूटे?
भेदज्ञान वडे चैतन्यभाव अने रागभावने सर्वथा जुदा जाणीने,
चैतन्यभावने तो पोतापणे ग्रहण करवो, अने समस्त रागादि परभावोने
पररूपे जाणीने छोडवा.–एम करवाथी शुद्ध आत्मानुं ग्रहण थाय छे, एटले
परभावना ग्रहणरूप चोरी मटीने निरपराधपणुं थाय छे, अने बंधन छूटी
जाय छे. शुद्धात्मारूपे ज पोताने अनुभवनारो जीव बंधनने छेदीने
अल्पकाळमां मोक्षने पामे छे. अने आत्माने अशुद्ध अनुभवनारो जीव
शुभराग वडे पण कदी बंधनथी छूटकारो पामतो नथी, ते बंधाय ज छे.
* शुद्धआत्मा केवो छे?
ते महा आनंदनो भंडार छे, दुःखथी खाली छे, तेमांथी गमे तेटलो आनंद
प्रगट करीने भोगव्या ज करो, पण ते कदी खूटे तेम नथी, आवो आनंदनो
खजानो आत्मा छे. आवा आत्माने अनुभवतो धर्मी जीव मुक्त छे.
* धर्मी मुक्त केम छे?
शुद्ध चैतन्यभावरूप पोताना अनुभवमां रागादि बंधभावनो जरापण प्रवेश
थवा देता नथी, बंधभावने पोताथी अत्यंत जुदो ने जुदो राखे छे, तेथी ते
मुक्त छे.