
थयो. कोई पारकी कृपा के पारकी प्रसन्नता आत्माने कांई आपी दे तेम नथी,
ज्ञानीए स्वानुभूति वडे पोताना आत्माने प्रसन्न कर्यो, एटले के आत्मानी
आराधना करी; त्यां आत्मा पोते प्रसन्न थईने पोताने पूर्ण आनंद ने मोक्ष
आपे छे; एटले कार्यनी सिद्धि थई जाय छे. आत्मा सिवाय बीजानी
आराधना करीने तेमनी पासेथी कांई लेवा मांगे तो ते अपराधी छे. अज्ञानी
छे. केमके ते पारकी वस्तुनुं ग्रहण करवा मांगे छे. ज्ञानी जाणे छे के मारे
जगतमां कोई पासेथी कांई लेवानुं नथी, परद्रव्य वगरनो मारो उपयोग–
स्वरूप आत्मा ज स्वयं परिपूर्ण छे; आवा मारा आत्मानी ज आराधनाथी
मारा स्वकार्यनी सिद्धि छे.
सेवे छे. आवुं अशुद्धतानुं सेवन ते ज अपराध होवाथी बंधनुं कारण छे.
ज्ञानस्वरूपे ज अनुभवे छे एटले के पोताना शुद्धआत्माने ज ते भजे छे, तेमां
निर्दोषपणुं होवाथी तेने बंधन जरापण थतुं नथी.
आत्मानुं भजन (तेनां श्रद्धा–ज्ञान–अनुभव) करे तो तेने संसारभ्रमण रहे
नहीं, ते आराधक थईने मोक्षने साधे.
कोई परभावने तारामां ग्रहण करे छे?–के तेनाथी लाभ माने छे?
–जो कहे के हा; तो आचार्य भगवान कहे छे के तुं पारकी वस्तुने लेनारो
अपराधी छो, तने कर्मबंधन थशे.