Atmadharma magazine - Ank 321
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : अषाड : २४९६
जीवने पोतानी केवळज्ञानादि पर्यायो साथे तन्मयता छे, तेमां तन्मय थईने ते
पर्यायपणे जीवद्रव्य उपजे छे, एटले तेने पोतानी पर्याय साथे कर्ता–कर्मपणुं छे पण
अजीव साथे तेने कर्ता कर्मपणुं नथी. पोतानी पर्यायथी द्रव्य अनेरूं नथी, पोतानी
पर्याय साथे द्रव्यने तादात्म्य छे,–एवा निर्णयमां अपूर्व भेदज्ञान छे, ने स्वसन्मुखता
थईने मोक्षमार्ग प्रगटे छे, मारा आत्माने मारी पर्याय साथे ज तन्मयता छे एम नक्की
करनार जीव स्वसन्मुख निर्मळ पर्यायो साथे ज तन्मयपणे ऊपजे छे, रागादिमां
तन्मयपणे ते ऊपजतो नथी.–आनुं नाम धर्म छे.
कर्मना आश्रये कर्ता, अने कर्ताना आश्रये कर्म–एम कर्ताकर्मनुं अनन्यपणुं छे,
आ सिवाय बीजी कोई रीते कर्ताकर्मनी सिद्धि जोवामां आवती नथी. एटले के भिन्न
पदार्थो वच्चे कर्ताकर्मपणुं होतुं नथी. आवा भेदज्ञानमां रागनुं पण अकर्तापणुं थई जाय
छे, ने सुविशुद्ध ज्ञानपणे ज आत्मा प्रगट थाय छे.
एक वस्तुना परिणाम कोई बीजाथी थाय–एम कदी बनतुं नथी, केमके सर्व
द्रव्योने अन्य द्रव्यनी साथे उत्पाद्य–उत्पादकभावनो अभाव छे. आम नक्की करीने,
परथी निरपेक्षपणे एटले के स्वभावनी सन्मुखपणे जीव ऊपजे छे, एटले तेमां
क्रमेक्रमे निर्मळ पर्यायो ज थया करे छे. स्वसन्मुख थईने आत्मानो सर्वज्ञस्वभाव
जे श्रद्धा–ज्ञानमां बेठो ते श्रद्धा–ज्ञानमां रागादि परभावोनुं कर्तृत्व रहेतुं नथी.
पोताना अनंत गुणनी निर्मळपर्याय साथे तन्मय थईने ते परिणमे छे; तेना
परिणमननो प्रवाह आनंदना वेदन सहित सर्वज्ञता तरफ चाल्यो; सर्वज्ञनो विरह
तेने न रह्यो.
जीवना परिणाम ते जीव ज छे, अजीव नथी, अने अजीवना परिणाम ते अजीव
ज छे, जीव नथी.–जेम सोनानी बंगडी ते सोनुं ज छे, ते लोढुं नथी, तेम दरेक द्रव्यना
परिणाम ते–ते द्रव्य साथे ज तन्मय छे, ने अन्यथी भिन्न छे.–आवुं वस्तुस्वरूप छे.
आवुं वस्तुस्वरूप जाणनार ज्ञानी पोताना ज्ञानभाव सिवाय अन्य रागादि सर्वे
परभावोनो अकर्ता थाय छे, ते रागना ज्ञानपणे ऊपजे छे पण रागमां तन्मयरूपे
ऊपजतो नथी. स्वद्रव्यनी क्रम नियमित पर्याय पोताथी ज छे एम नक्की करनार जीव
स्वद्रव्यना आश्रये